मुक्तिबोध के काव्य में जन - चेतना | Muktibodh Ke Kabya Mein Jan-chetna
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
229
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विनोद कुमार त्रिपाठी - Vinod Kumar Tripathi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अपने मुहावरे और अंदाज भी बदल दिये हैं। हो सकता है कि ये लोग आज
यूनेस्को की अर्न्तराष्ट्रीय शब्दावली मे बात करते हो, और यह भी हो सकता है कि
नागपुर यूनीवर्सिटी से तुलसीदास के दर्शन पर उन्होने अपनी पुस्तक प्रकाशित
करवायी हो। पुराणपन्थी से हमारा तात्पर्य उन सभी सज्जनो से है जिनका सौजन्य
सामान्य जन की बौद्धिक-सामाजिक-राजनैतिक मुक्ति के आडे आना है।
“सामान्य-जन या “जनता शब्द के प्रयोग से घबराने की जरूरत नहीं (यद्यपि
तरह-तरह के अवसरवादियो द्वारा इस शब्द का खूब दुरूपयोग किया गया है) ।
मध्य वर्ग के गरीब बुद्धिजीवी लोग भी जनता में शामिल हैं, बशर्त कि वे समाज की
थैली-शाही के भोंपू न बने। हो सकता है कि गरीब बुद्धिजीवी और लेखक भटका
हुआ हो किन्तु उसकी स्वयं की स्थिति कोई उससे छीन नहीं लेता। और आम तौर
पर उसकी स्थिति ही ऐसी है कि वह जनता मे है। चण्डीदास का वह पद -
शुनह मानुष भाई शबार ऊपर मानुष शत्तो ताहार ऊपरे नाई। - जिस मनुष्य सत्य
की घोषणा करता है उसका मूल अधिष्ठान जनता में है। इस जनता को आंखों से
ओझल करके देशभक्ति नहीं हो सकती ।”१
१- मु० रच०, भाग-पू-पृ०-६४
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