भारत में राजकीय व्यापार : आलोचनात्मक मूल्यांकन | Bharat Me Rajkiya Vyapar-Aalochanatmak Mulyankan

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Book Image : भारत में राजकीय व्यापार : आलोचनात्मक मूल्यांकन  - Bharat Me Rajkiya Vyapar-Aalochanatmak Mulyankan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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¢ 11 सावर्जनिक राजस्व की प्राप्ति का स्रोत - कुछ व्यक्ति राजकीय व्यापार को इसलिए अधिक अच्छा कहते है कि इससे सार्वजनिक राजस्व की प्राप्ति होती है। मुख्य रूप से विकासशील देशो की आर्थिक मामलौ मे सरकार की बढती हुई भूमिका के निर्वहन के लिए वित्तीय आवश्यकता बहुत बढ गयी है। सरकार घरेलू एव विदेशी मूल्य की असमानता को समाप्त करने के लिए कुछ वस्तुओ पर आयात और निर्यात प्रतिबन्ध लागू करके विदेशी व्यापार के माध्यम से अप्रत्याशित लाभ कमा सकती है। कुछ व्यापारियो को ओर अधिक सम्पन्न बनाने के बजाय सरकार इस तरह से प्राप्त अप्रत्याशित लाभ का प्रयोग सामान्य जनता के हित के लिए कर सकती है। (ख)_ आशय - राज्य शब्द का प्रयोग सामान्य तौर पर दो अर्थों मे किया जाता है- प्रथम एक सामाजिक सगठन के रूप मे, तथा द्वितीय सत्ता के सगठन के रूप मे। प्रथम अर्थ मे राज्य ऐसे समाज का द्योतक है जो एक निश्चित क्षेत्र मे बसा हुआ हो और राजनीतिक दृष्टि से सगठित हो, अर्थात्‌ जिसमे मूल्यो का अधिकारिक आवटन करने वाली सत्ता विकसित कर ली गयी हो। दूसरे अर्थ मे राज्य उस सस्था या सत्ता का द्योतक है जो “मूल्यो का अधिकारिक आवटन करती है ओर व्यक्तियो तथा समूहो की मगो ओर मतभेदो का समाधान करती है। राज्य का आधुनिक आशय इन शब्दो मे व्यक्त किया जा सकता है कि राज्य मनुष्य के उस समुदाय का नाम है जी सख्या मे चाहे अधिक हो या कम, पर जो किसी निश्चित भू-खण्ड पर स्थायी रूप से बसा हो,जो किसी भी बाहरी शक्ति से मुक्त हो ओर जिसमे एक संगठित सरकार हो, राज्य के सारे । | भागरिक जिसके आदेशो के पालन के अभ्यासी हो। 2 इस प्रकार महान राजनीतिक विचारको के अनुसार राज्य के पास जनसख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार एव सप्रभुता होनी चादिए। 3 जनसख्या ओर भू-भाग का कोई आकार निश्चित नही है, लेकिन फिर भी यह इतना अवश्य हौ कि जीवन के विविध पक्षो की देख-भाल सुचारु रूप से की जा सके। सरकार की स्थिति कम्पनी के सचालक की तरह होती है। जैसे सचालक कम्पनी की ओर से कार्य करते है, वैसे ही पयसो तवामृि चगो प विः अदो येयो पयो वोः कणेर व यि को जयोक ण ययी, आक वोः धि दो भ योद णया (कोक कोद वे (दि भ्या, -जयिककः व कोवा समी मका, सि सन गय सनदनि का ककण ।ग्णौिषौीषगौषषौीगगणमीणरेमी णरीणीीणणीषगौ णमि ण णि णी 9) ए ए 1 अ भ 1 राजनीति के सिद्रान्त की रुपरेखा-गाना, ओ0पी0 , नेशनल पन्लिशिग हाउस , नई दिल्ती-1987, पृष्ठ २0 32 2 राजनीति के सिद्वान्त- जैन, एम पी , आर्थर गिल्ड पन्लिकेशस , दिल्ती-1988 , पृष्ठ सख्या 05 3 राजनीति विज्ञान के सिद्ान्त- जैन, पुखराज, साहित्य भवन आगरा-1983, पृष्ठ सख्या 76




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