दासबोध | Dasbodh

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Dasbodh by श्री रामदास स्वामी - Shri Ramdas Swami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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टाकली में तपश्चर्या | ८ जगल मे च्छे गये । उनके ज्येष्ठ बन्धु बहुत समन्ना-वुन्चाकर उन्हें घर ले आये ! उनकी यह चारु देख कर माता राषूबाईं को बड़ी चिन्ता हुई । श्रेष्ठ अपने कानष्ट बन्धु नारायण की विरक्ति देख कर पहले ही समझ गये थे कि यह विवाह नहीं करना चाहता । उन्होंने अपनी माता को बहुत श्रकार से समझाया; पर वै बार बार यह कहतीं कि नारायणः का विवाह अवद्य होना चाहिए । अवसर पाकर एक दिन साता राणूबाई अपने नारायण. करो एकान्त स्थान में ठे गई ओर सुख पर हाथ फेर कर, बड़े लाइ-प्यार से बोलीं, ^“ बेटा,. तू मेरा कहना सानता है या नहीं ? बाङ्के समथै ने उत्तर दिया, “ मातु्री, इसके स्थि क्या पूछना है? आपका कहना न मानेंगे तो मानेंगे किसका ? कहा भी है, न मातुः प्र. देवतम्‌ , ` यह सुन कर माता राणूबाई बोलीं, “' अच्छा तो विंवाह की बात चलने पर तू. ऐसा पागलपन क्यों करता है १ तुन्न मेरी शपथ दै; * अन्तरपट ” पकड़ने तक तू. विवाह क लिए इन्कार न करना । ” माता करी यह बात सुन कर समर्थ बड़े विचार में पढे । कुछ देर तक्र सोच-विचार कर उन्होंने उत्तर दिया, ” अच्छा, अन्तरपट पकड़ने तक में इन्कार न करूँगा । *' भोाली भाली बिचारी माता ! समथ के दाँव पेंच उसे केसे मादम होते ! राणूबाई ने समझ लिया कि लड़का विवाह करने के लिए तैयार होगया । उन्होंने जब यह बात अपने बढ़े पुत्र श्रेष्ठ से बतलाई तब वे कुछ हूँसे और प्रकट में सिफ इतना ही कहा, ' क्यों न हों! ” जब देखा गया कि लड़का विवाह करने के लिए राजी हैं तव सब की सम्मति से एकं कुरीन ओर प्राचीन सभ्बन्धी कुरु की कन्या से विवाह निश्चित किया गया । लम्तिथि के दिन श्रेष्ठ सारी बरात लेकर, बडी धूमधाम के साथ कन्या के पिता के यहाँ पहुँचे । सब के साथ समथ भी आनन्दपूवैक गये 1 सीमान्तवूजन , पुण्याहवाचन आदि ल्य्विधि होते समय श्रेष्ठ और समये, दोनों भाई, आपस में एक दूसेरे की ओर देख कर, मन्द्‌ मन्द्‌ हँसते जाते. थे | कुछ समय के बाद अन्तरपट पकड़ने का अवसर आया । ब्राह्मणों ने मंगलाइ्क पढ़ना प्रारम्भ किया । सब ब्राह्मण एक साथ ही * सावधान ” बोले । समर्थ ने सोचा कि मैं सदा सबेदा सावधान रहता हूँ; फिर भी ये छोग *' सावधान, सावधान ' कहते ही हैं; इस लिए इस शब्द में अवस्य कुछ न कुछ भेद होना चाहिए । मातुश्री कीं आज्ञा भी अन्तरपट पकड़ने तक की ही थी । वह भी पूर्ण हो गई । में अपना वचन पूरा कर चुरा । अब में यहाँ क्यों बैठा हूँ ? मुझे सचमुच सावधान होना चाहिए--इस प्रकार मन में विचार करके. समथ एकदम लम्रमण्डप से उठ कर भगे | कई लोग उनके पीछे दौड़े; पर॒ वे हाथ नहीं आये । इघर लममण्डप में बडा शोर-गुल मचा | कुछ शान्ति होने पर, ब्राह्मणों ने लड़की का दूसरा विवाह कर देने के लिए शाल्राघार दिंखलाकर सम्मति दी । समय के भगने का हाल जब उनकी माता को साल हुआ तब वे बहुत दुःखित हुई । श्रेष्ठ ने उनका समाधान किया ओर कदा करि, “ आप को$ चिन्ता न करें । नारायण कहीं न कहीं आनन्द से रहेंगा। मैं पहले दी कहता था कि उसके विवाह के प्रबल में न पड़ों । अस्तु; जो हुआ सो हुआ | ”'” टाकली में तपश्चयां । विचाह समय से सावधान होकर समये पहले दो चार दिन अपने गाँव जाँब की पंचवटी




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