धीरे बहो गंगा | Dhire Baho Ganga

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Dhire Baho Ganga by देवेन्द्र सत्यार्थी - Devendra Satyarthi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about देवेन्द्र सत्यार्थी - Devendra Satyarthi

Add Infomation AboutDevendra Satyarthi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ६ ) इदमन्धतमः करस्नं जायेत भुवन श्रयम्‌ । यदि शब्दाह्भयं ज्यो तिरासीत संसारं न दीप्यते | इन श्रसंख्य जलोकगीतों की भामा श्रमिन्न हे । भाषा का भेद होते हुए भी गीतों में व्याप्त भारतीय मानव का हृदय, उसके दुःख-सुख की अनुभूति, उखकी झारा श्ौर निराशा एक जेसी दी है। शब्दों की दृष्टि से स्थान-स्थान के गीत श्रलग-प्रलग होने पर सवमें समान शझर्थ का घागा पिरोया हुआ है । अथे की एकता गीतमय भारत को विलक्षण एकता प्रदान करती दे एकता की यह परिपाडी प्रान्त-प्रान्त के गीतों में श्रनेक प्रकारसे प्रकट होती हुई दिखाई पढ़ेगी । नीले श्राकाश के नीचे प्रकृति के बहुरंगी परिवतन, युद्ध श्रौर शान्तिमय जीवन के चिन्न एवं विधाता की स्त्री-संश्षक रहस्यमयी सृष्टि की मानवीय जीवन पर प्रसाद और विधादमयी छात्रा--ये इन गीतों के प्रधान विषय हैं जो शतकोटि कण्ठों से सददस्रों बार गाये जाने पर भी पुराने नहीं पढ़ते, और जिन- की संतत्‌ किलकारी वायु में भरे हुए चिरंतन स्वर की तरदद सवन्र सुनाई पढ़ती है। गीत मानों कभी न छीजने वाले रस के सोते हैं । वे कण्ठ से गाने के लिए ौर हृदय से श्रानन्द लेने के लिए दें । श्राकाश में भरा दुआ शब्द जब गीत के रूप मेँ प्रकट होता है तब मानों मानव के चिरंजीवी भाव साकार हो उठते हें । इन मनोभावों का श्रष्ययन किसी भी जन-समुदाय के ्रन्तःकरण तक पहुँचने के लिए सबसे सीधा मागं कषा जा सकता है । लोकगीतॉोंका साहित्य बहुत बढ़ा दे । पुर,जनपद श्रौर जंगल सब दी मान जनता की गीतात्मक प्रवृत्ति से भरे हुए हैं । गीतों की दुनिया में कोल, भील, शबर, मुण्डा, उरांव, गोण्ड आदि बनों में रदनेवाली श्रादिम जातियों का भी उतना ही बढ़ा भाग दे जितना कि शहरों में श्रौर बस्तियों में रहने .वाली ्रन्य जनता का। श्रपने ्रपने लय भी सबको समान रूप से निय होती है । राट्रय दृष्टि से इन गीतों के संकलन की बढ़ी अवश्यकता हे । शीघ्र दी यह काय नियमित ढंग से किसी सुसंगठित संस्था को ्रपनै दाथ में लेना चाहिए । गीतों की तान उनका प्राण कहा जा सकता है । कणठ से गाए जाने वाले गीत में जितना अधिक श्रथ प्रकट द्ोता है लिखे हुए श्रच्षरों को पदने से उतना नहीं । झअतएव गीतों को गाने वालों के कणठ से दी पूरी ध्वमि झोर तान के साय रिकार्ड में भर लेना चाहिए । इस प्रकार जो गीत रिकाडे में चढ़ गया उसे मानों दमने अमर कर दिया । उसकी लय को हम जब चाहें सुन सकते हे । इस प्रकार के घुने हुए दस सहस्र गीत भी यदि रिकार्ड में चढ़ाए जासके तो इस संस्कृति के संरक्षण का एक बड़ा काम पूर्ण हो




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now