भारी भ्रम | Bhari Bhram
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
66 MB
कुल पष्ठ :
397
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
नार्मन एंजेल - Norman Angell
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रामदास गौड़ - Ramdas Gaud
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ युरोपका संश्िप्त इतिहास
साघाज्यपर चढ़ाई की श्रौर झन्ततः १५४२में कुस्तुन्तुनियांमें दखल
कर लिया । इस समय इटलीमें भी खतंत्र राल्य स्थापित षो गया
था। युरोपके पश्चिमीय स्वतंत्र राज्योंमें तुकाकि झाक्रमणसे भागे
हुए दार्शनिकों, साहित्यिकों तथा साधारणुतः घिद्या व्यसमियेांको
शरण मिली, तबसे युरोपमें पादरियोंके सिवाय साघारण लोगोंमें
भी विद्या श्रोर खतंत्र घिचारका प्रचार ष्ट्रा जिस विद्यापर
पाद्रि्योनि अपना इजाया कर रक््खा था उसके सवसाधारर में
फोलनेसे नये याव नये विचार उत्पन्न इए । इसलिए १४-१५
सदीको “परिवत्तंनकालः कहते हैँ ।
इस जागतिक पहले युरोपके सवंसाधारणके विचार श्रव्यन्त
संकुचित थे । मुढताःश्रौर ्नन्धविश्वास पेसा फल ,
जाइ-दोने और रहा था कि सभी जादू टोने टोटकोौके भक्त थे ।
जाति ईसाई मत तो नाममात्र को था । भूतप्रेत जादू टोना
बड़ पदर लिखे पादरी भी मानते थे। कोई निष्ट इश्रा नहीं कि
उसका दोष किसी जादुगरनीके सिर मदा गया । इतना ही नहीं ।
जादुगयौ श्रौर जादुगरनिर्योको समुद्रे तूफ़ान उखा देने, राज्यम
द्मवर्षण॒ करा देने, मपी फोलने झादि माने हए श्रपराधोौपर श्रनेक
यातनाएँ दे दे मार डालते थे। योतो यह मूखंता युरोपभरमं बहुत
कालसे थी किन्तु तेरहवीं सदीसे खूव बही । वैज्ञानिक खोज करने-
वाले. रासायनिक, भौतिक रादि जिस किसीने कोई श्रचम्भेकां
गुण झपनेमें दिखाया जादूगर समभा गया झौर विविध यातनाशओं-
का पात्र बन गया। पादरी लोग कहते थे कि यह लोग शेतानके
चेले हैं. श्र मूखे जनसाधारण इसी विश्वासपर इनपर टूट पड़ता
था | राजर बेकन नामक पक प्रसिद्ध पादरी चैज्ञानिक इसी बातपर
पेरिसमें बन्दी रहा । झठारददवीं सदीतक इस मूढ़ताका ऐसा ज़ोर
रहा कि प्रसिद्ध रासायनिक प्रीस्टलेका घर जला दिया गया । इस
झन्घविश्वासका कारण बैविलके ही कुछ वाक्य थे । बेबिलने श्रादि-
से दीस्त्री जातिको पापोका मूल ठदरों रक््खा था सो स्त्रियां ही.
अधिकतः जादूगरनियां बनाकर मारी जाती थीं । सत्रहवीं सदौीतकः.
युरोपीय मचुभ्योके मनपर जादू टोनेका राज्य था । विज्ञानके प्रचार:
से ही बस श्रन्धपरस्पराका हास हुश्च । किन्तु अब भी जादू टोने
माननेवाले मजुष्य युरोपके सभ्य जनसाधारणमं कम नहीं हैं ।
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