वाक्य सुधा | Vakya Sudha

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Vakya Sudha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घाक्य सुधा | हु अपर फटकार लक लाभ लय 'ऋक झ आर फराध पेज ७४ अत रच ७७ आल आल करियर. क-# ७४ ७८ सदलध्यस रथ चनता है वह मिर्थ्या द्रष्टा हें वासविक नहीं । मन श्र नेत्र जड़ हैं उसमें जो चेतन्यता दीखती है वदद आभास की है, श्ाभास साक्षी की दमक है, इसीसे चेतनता मन आर नेत्र में नहीं है। विद्या झपने सच कार्यों के सहित चंतन्य में झध्यस्त है उसका अधिप्टान जो चतन्य उसका विशेष वोध न होते हुए भी सामान्य बोध जाता नहीं । वद्दी सामान्यता अपनी दूमक द्वारा विशेष चेतन रूप से माठूम दोती हे । शंक्ाः--जड़ पदाथ भी अपना कारण अचिद्या सहित पेतन्य में श्रध्यस्त हे तो वद्द भी मन या नेत्र के समान चेतन मालूम द्ोना चाहिये । समाधान:--जड़ पदाथ नि्मलता ,रदित हैं इससे चेतन्य के आधार में होते हुए भी चेतन्यता रहित दीखते हैं जो पदार्थ निमंत्र होता दं उसी में चंतन्य की दमक होती हं। दमक मलीनता में नहीं दीखती इसी से लोगों में दमक वाले को चेतन और दमक रहित को.जड़ कहते हैं । शेंक्रा:--पदार्थों' में निमलता 'और मलीनता का हेवु क्‍या है ! समाधानः--प्रकृति-अविद्या त्रियुणात्मक है, सतोशुण रजो' गुण और तमागुण स्वरूप है। जिस पदार्थ में सतोगुण की अधिकता होती है उसमें निमलता होती हे और जिसमें तमों- गुण की श्रधिक घनता' होती, है वही मलीनता, वाली होती है। कोई भी पदार्थ चेंतन्य .के. आधार से रहित नहीं हे। झाधार की दमक जिसे चिदाभास कहते हैं ,वद्द, निर्मलता में दीखती हे मलीनता में नहीं ।.जेसा पद्टाथ दोता दे वैसी, ही:उसमें * दुमक




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