दिगदर्शन | digdarshan

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digdarshan  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विस्ताररुचि सम्यक्त्व ३ ~~ ^~ ~~ ~^ ^-^ ~~~ संसार में जितने भी द्रव्य है , दे अनन्त-अनन्त भावों को लिए हुए हैं । उनका सही - सही संतुलन करने के लिए ज्ञानियों ने एक मापदंड निश्चित कर दिया है, जिस से तोल कर किसी भी पदार्थ के भावों को जाना जा सकता है । श्राप दुकानदारी करते है , परन्तु सब वस्तुओं को देख कर ही श्रदाजा ही कर सक्ते कि यहं बराबर ही है - इतनी ही है । कदा- चित श्राप भ्रदाजा लगा भी ले तो ग्राहक को शंका बनी रहती है । उसे विश्वास नहीं होता कि आपने जो चीज़ जितनी कह कर दी है , वह उतनी ही है अथवा कम - ज्यादा है ? इस उलभान से बचने के लिए एक तराजू- एक मापदंड निश्चित कर लिया गया है। उसमे दोनो तरफ दो बराबरी के पलड़े होते हैं श्रौर उस से ग्राहक को श्रावश्यकतानुसार वस्तु तोल कर दे दो जातो है। ग्राहक प्रत्यक्ष से दोनों पलडे बराबर देख कर समभ लेता है श्रौर विश्वास कर लेता है कि वस्तु बराजर है--- कस नहीं है । तो जेसे ससारिक कार्यो के लिए सापदंड होता है, उसी प्रकार शास्त्रकारो ने द्व्यो का सतुलन करने के लिए--ठीक तरह से नाप- तोल करने श्रर्थात्‌ पदार्थों का स्वरूप निश्चित करने के लिए भी एक तराजु प्रस्तुत कर दी है ! उस तराच्रु के भौ दो पलड़े है -- प्रमाण और नय । एक कहता है--यह ज्यादा है दूसरा कहता हैं- नही, कम है । तीसरा कड॒ता है--शरावर है। इस प्रकार सब दिवाद में पड़ जाते है । तब मध्यस्थभादी ज्ञानी कहते है - विवाद करने की श्रावश्यकता




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