संत तुलसीदास और उनके सन्देश | Sant Tulsidas Aur Unke Sandesh

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Sant Tulsidas Aur Unke Sandesh by डॉ. राजपति दीक्षित - Dr. Rajpati Dikshit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० संत तुलसीदास श्र उनके संदेश ढुद्य में राम-मक्ति का झंकुर उगने लगा । बाल्य-हृदय मे सांसारिक बासनाश्नो के कटको का अभाव होने के कारण राम-प्रेम का पोदा झबाध गति से बढ़ने लगा शौर कालान्तर सें झक्षयवट हो गया । बालक बिना सोल का ही राम का दास हो गया; उसे झपने भाग्य सें रासनाम ही की शोट लिखी मिली 1--इस प्रकार निष्कपट भाव से राम-भक्ति की श्रोर चैर बढाते जाने श्र रूखा-सूखा माँग कर खाने से भी उसे शांतिमय जीवन की शनुभूति बाल्यकाल ही में होने लगी । इससे संदेद नदी कि संत ने दुयाद़ दोकर बालक को रामभक्ति का सहारा दिया झोर उससे उसे शांति को झ्नुभ्रूति हुई, परन्तु इसी संबंध में यह भी स्मरण रखने की बात है कि बाव्यकाल में ही रामभक्ति के साथ इनु- मान की भक्ति भी इस बालक को झतिप्रिय थी । बाल्यावस्था से दी इनुमानने इसे थपना बना लिया था । इतनां हौ नदी, बाल्यका से ही तुललीदासका कोमल हृदय शिव की भक्ति की ओर भी छुका था । इसीलिये इन तीनों के प्रति उनके हृदय में झन्तत. झविचल, अटल, झनस्य, प्रेम बना रहा ¦ उन्होने इन तीनो को क्रमश: “साहेब, 'सद्दाय' शोर युर के रूप में देखा और इन तीनो @े अतिरिक्त अरन्य किसी देव को झपनी आराधना का पात्र नही बनाया, ) बाल्यावस्था का श्चौर कोई इश्य उपस्थित करने के पूवं बाल्यकाल के नाम का संकेत मी अरंतःसाच्य के श्राधार पर देखिये-- '“राम बोला नाम हौ गुलाम राम साहि को, > 9६ 9६ राम को गुखाम नाम राम बोला ~ --। सम्भवतः इन्दं राम-नाम जपते देख जोग राम बोला कह कर पुकारते रहे हो । तुलसीदास बाल्यावस्था मे करटा बिललबिल्लाते थे, इसका कोई शंतःसादय नहीं । पर, झनुमान किया जा सकता है कि जहाँ पैदा हुए थे उसी भूमि में सारे-मारे फिरते रहें होगे और वदी किसी रमते साधु ने दयाद्रं होकर उन्हे २, 'हनु०्बा०' छु० २८ “हो तो बिन मोल ही बिकाने बलि बारे ते ।”” २, कविता उ० छु० ४० “बालपने सूचे मन राम सन्मुख भये'* 1” ३ ,, हिनु०्चा० छु० ९१ “बालक बिलोकि, बलि, बारे ते आापनो कियो '**।”” ४ ,, “वद्दी' ६ ५४३ (सीतापति (सहिः 'सद्दाय' इनुमान ००१००७१ गुरुके | 93 ५. “कंविता०ः उ० छु° १०५० & 'विनय०' पद ७६




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