भारतीय अभिलेखों में प्रतिबंधित व्यवसायिक समुदायों का अध्ययन (छटी शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक) | Study Of occupation Groups As Reflected In Indian Inscriptions From 600 A.D. To 1200 A.D.

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Study Of occupation Groups As Reflected In Indian Inscriptions From 600 A.D. To 1200 A.D. by कु. रत्ना - Kmr. Ratna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्राहमण क -व्यवसाय *~ 8 त वि नकि चव्य ने सामान्यतः ब्नाहुमणो का कर्त्दव्य अध्ययन उध्यापन, अजन-भराजन, दान प्रतिग्रह से जीक्ोपार्जन करना था । प्राचीन धर्मशास्त्र, पुराणो, स्तय मे उने जीवक्ौपार्जन क ननिनिमित्त षड कर्मों का ही विधान क्या है 121 पूर्व - मध्य कालीन शास्त्रकारों ने भी प्राचीन चिचारको का अनुसरण उरते हुये उन्कै सामान्य कर्त्तव्यौ की चर्चा की हे । चिष्णु स्पृत्ति में अजन, उध्यापन को ब्राहुमणों का कर्म विहित किया हे 1-2 इसके अत्तिथिक्त पराशय, अन्ि तथा शंस स्मृत्तियोँ में षऊकर्मों का चिधान है 17” याज्वल्क्य के अनुसार कट्कर्मों में अजन, अध्ययन और दान का त्तिन अन्य दििज वर्गी के लिये भी था परन्तु याजन, अध्यापन और प्रतिग्रह क अधिकार वन ब्ाहुमगो कौ प्राप्त था ।-“ कामन्दक ने पठन, अध्यापन, प्रीतग्राह को ब्राहमण उ कर्म हित किया है 1 ~ भाजनाध्यापने शु व्विशुढाश्च प्रतिग्रहः । व त्तत्रयीमदं प्रीक्त मिनि -ज्येष>़ वर्णिनः ।। { कामन्दकी नीत्तिसार सर्ग 2 श्लोक 19-21 आचार्य शुक ने ज्ञान र्य, उपासना, अराधना मैं रत ब्राहमणो का उल्लेख किया है - ज्ञानक्मॉपासनी भर्टेवता राधने रत?! । 5 शाता दातो दयगलुरच ज्ाहमणौ कृतः | शुक्रनीत्ति अध्याय । श्लोक 40 ह अधीत कानीन ग्रन्थ कृत्य केल्पतरू में लक्षमीधर ने ब्राइमण दर्ण के अध्ययन, अध्यापन जैसे कर्मों का चिधान किया है 177 इस संदर्भ में प्राप्त अभ्भनियोय साक्ष्य में कीलिंग के स्वामी अनन्तवर्मन के ससिरपुर तामप्र पत्र हूछती शताब्दी हूं में, अध्ययन-अध्यापन भजन, याजन, दान-प्रीतिग्रह में निरत ष्टकर्मों का अनुसरण करने वाजे ज्ञाहमगीं का उल्नेख ३ । 29




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