भारतीय अभिलेखों में प्रतिबिम्बित व्यावसायिक समुदायों का अध्ययन | bhartiy Abhilekhao me Pratibimibat Samudayo samuday ka adhyaih

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bhartiy Abhilekhao me Pratibimibat Samudayo samuday ka adhyaih by कु. रत्ना - Kmr. Ratna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्राहमणी का व्यवसाय - नाक मत मात वास लाला पततबएं लावा लाए लक मद सतत मात पल पानात लता लात बवाल बला किक सामान्यतः ब्वाइमणो का कर्त्तव्य अध्ययन उध्यापन अजन-श्राजन दान प्रत्तिग्रह से जीवकोपार्जन करना था । प्राचीन धर्मशवास्त्रीं पुराणों स्मृत्तियँ मैं उनके जीवकोपार्जन के निमित्त षड कर्मों का ही चिधान किया है 1 . पूर्व - मध्य कालीन शास्त्रकारों ने भी प्राघीन का अनुसरण करते हुये उनके सामान्य कर्त्तव्याँ की चर्चा की है । चिष्णु स्मृत्ति मैं अजन उध्यापन को ज्ाइमगों का कर्म चित्हित किया है 1? इसके अत्तिथिक्त पराशिय अन्रि तथा शंख स्मृततियोँ में षउकर्मों का चिधान है 1 याज्तल्क्य के अनुसार कट्कर्मों में जन अध्ययन और दान का लिधान अन्य दि्ज वर्गी के लिये भी था परन्तु याजन अध्यापन और प्रतिग्रह का अधिकार केवल ब्राह्मणों की प्राप्त था 17 कामन्दक ने अजन अध्यापन प्रीतग्रह को ब्ाहुमण का कर्म चित किया है - भाजनाध्यापने शुद्दे विशुद्धाशच प्रततिग्रह । वृत्त्तित्रयम्दे प्रीक्त मुनि ज्येष्ठ वीर्णन ।। प्र कामन्दकी नीत्तिसार सर्ग 2 श्लोक 19-21 आचार्य शुक ने ज्ञान कर्य उपासना उराधना मैं रत ब्राइमणों का उल्लेख किया है - ज्ञानकर्मोपासनी भर्देवता राधने रत । की शाता दातो दयालुश्च ब्ञाइमणी कृत | अध्याय । श्लोक 40 | जधीत कालीन ग्रम्थ कत्य केल्पतरू में लक्ष्मीधघर ने ब्राइमण वर्ण के अध्ययन अध्यापन जैसे कर्मों का चिधान फिया है 17. इस संदर्भ मैं प्राप्त अ्भनिसोय साक्ष्य मेँ किंग के स्वामी अनन्तवर्मन के सिरपुर ताम् पत्र पुढछठी शताब्दी हूं में अध्ययन-अध्यापन शथजन याजन दान-प्रीतिग्रह में ननिरत क्टकर्मों का अनुसरण करने वानें ब्राइमणी का उल्लेख है 1 ?




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