काव्य पुरुष | Kavya Poorush
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
232
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)काव्य-पुरुष
~--~- ट. ट ---
वाहयाभ्यंतर तथा परेह प्रदीपक दीपक,
विश्व-क्रियाश्नों का कर्ता, हं कारक-दीपक |
केवर वाचक प्रकट आप उपमेय लुप्त है,
अनुपमान है, क्या उपमा, गृण प्रकट-गुप्त ह ॥
न देन
तुल्ययोगिता मिले कहां जव एक वही है
कवि-निदशंना भी उस पर जंचतीन सही हं ।
आत्मा को तत्सद् मान उपमान अकेला,
उपमेयोपम खेल जहाँ जा सकता खेला ॥!
---५ ०--
एक समय मे नभ, जल, धट में जिसकी सत्ता,
हो उसकी पर्याय-व्यक्त किस भाँति महत्ता ।
हे विभ् जो, वह् ध्येय, यही कहना यथाथे है,
सगुण-व्याज से सेव्य सुपर्यायोक्ति सार्थ हूं ॥
सब प्रकार आधार-रहित हो स्थिति जो रहता,
वृध विशेष आनंद-रूप हौ उसको कहता ।
शोभित जिससे विश्व, विद्व से गोभित जो ह्,
अन्योन्य-क्रम सें माया, माया-पति मोहे ।
यों सवे, खल्विदं ब्रह्य, लोकोकति महा है,
छिपा छेक से घट घट में रम राम रहा हे ।
विनेषोक्ति है साथ सवंथा, जव सव कारण,
किन्तु तदिच्छा-विना काय का रहं निवारण ॥
जिस सृन्दर की सुन्दरता कं विना असुन्दर,
माया हो मोहिनी तथा नारद हौं बन्दर ।
विविध उक्तियीं से कहते कवि कीतंनकारी,
यश जिसका, वह् हो “रसालः को मंगलकारी ॥
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