काव्य पुरुष | Kavya Poorush

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Kavya Purush by पं. रामशंकर शुक्ल ' रसाल ' Ram Shankar Shukk ' Rasal ' - Pt. Ramshankar Shukk ' Rasal '

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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काव्य-पुरुष ~--~- ट. ट --- वाहयाभ्यंतर तथा परेह प्रदीपक दीपक, विश्व-क्रियाश्नों का कर्ता, हं कारक-दीपक | केवर वाचक प्रकट आप उपमेय लुप्त है, अनुपमान है, क्या उपमा, गृण प्रकट-गुप्त ह ॥ न देन तुल्ययोगिता मिले कहां जव एक वही है कवि-निदशंना भी उस पर जंचतीन सही हं । आत्मा को तत्सद्‌ मान उपमान अकेला, उपमेयोपम खेल जहाँ जा सकता खेला ॥! ---५ ०-- एक समय मे नभ, जल, धट में जिसकी सत्ता, हो उसकी पर्याय-व्यक्त किस भाँति महत्ता । हे विभ्‌ जो, वह्‌ ध्येय, यही कहना यथाथे है, सगुण-व्याज से सेव्य सुपर्यायोक्ति सार्थ हूं ॥ सब प्रकार आधार-रहित हो स्थिति जो रहता, वृध विशेष आनंद-रूप हौ उसको कहता । शोभित जिससे विश्व, विद्व से गोभित जो ह्‌, अन्योन्य-क्रम सें माया, माया-पति मोहे । यों सवे, खल्विदं ब्रह्य, लोकोकति महा है, छिपा छेक से घट घट में रम राम रहा हे । विनेषोक्ति है साथ सवंथा, जव सव कारण, किन्तु तदिच्छा-विना काय का रहं निवारण ॥ जिस सृन्दर की सुन्दरता कं विना असुन्दर, माया हो मोहिनी तथा नारद हौं बन्दर । विविध उक्तियीं से कहते कवि कीतंनकारी, यश जिसका, वह्‌ हो “रसालः को मंगलकारी ॥ १५




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