स्वास्थ्य विज्ञान | Swasthayay-vigyan

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Swasthayay-vigyan by मुकुंदा स्वरुप वर्मा - Mukunda Swaroop Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ नहीं है वे भी इसको राष्ट्रभापा होने के कारण माध्यमिक शिक्षा के क्रम में एक अधिक भाषा के रूप में सीख लें ओर विश्वविद्यालय की उच्च शिक्षा इसी भाषा में प्राप्त करें; यही उचित दहै। तामिल देश को देड- कर हिन्दुस्तान की प्रायः सभी भाषाएं संस्कृत श्राकृतादि क्रम से एक ही सूलभाषा या भाषामंडल मे' से उत्पन्न हुई हैं। श्रतएव उनमे' एक कैटुम्बिक साम्य है। इसलिए अन्य प्रान्तीय भी, श्रपनी मातृभाषा न होने पर भी, हिन्दी सहज ही मे सीख सक्ते है । ज्ञान-द्वार की स्वाभा- बिकता मे '.इससे कुछ॒न्यूनता ज़रूर श्राती है तघापि एकराष्ट की सिद्धि के लिए इतनी अल्प अस्वाभाविकता सह लेना झावश्यक है! उत्तम शिक्षा की कक्षा में यह दुष्कर भी नहीं है, क्योंकि मनुष्य की बुद्धि जैसे जैसे बढ़ती जाती है वैसे वैसे स्वाभाविकता के पार जाने का सामध्य भी कुछ सीमा तक बढ़ता है । झाघुनिक ज्ञान की उच्च शिक्ता मे उपकारक अन्थ हिन्दी मे, क्या हिन्दु स्तान की किसी भाषा में, अद्यापि विद्यमान नहीं हैं--इस प्रकार का श्राक्तेप करके 'भेंगरजी द्वारा शिक्षा देने की प्रचित रीति का कितने ही लोग समन करते हैं । किन्तु इस उक्ति का अन्योन्याश्रय दोष श्पष्ट हे, क्योकि जब तक देश' की भाषा द्वारा शिक्षा नहीं दी जाती तब तक भाषा के साहित्य का प्रफु- दित हाना असम्भव है शरोर जब तके यथेष्ट साहिय न मिल सके तव तक देशे की भाषा द्वारा शिष्ठा देना श्रसम्भव है। इस अन्योन्याश्रय दापापत्ति का उद्धार तमी हो सकता है जब अपेक्षित साहित्य यथाशक्ति उत्पन्न करके तदूद्वारा शिवा का श्रारस्म किया जाय] श्रारम्म मे जरूर पुस्तके डोरी देरी ही होंगी । लेकिन इन पर अध्यापको के उक्त-अ नुक्त दुरुक्त श्रादि विकेचन रूप एवं इष्ट पूत्तिरूप वातिक, तात्पस्थविवरण सूप इतति, भाष्य-टीका, खंडनादि मन्थो के होने से यह साहित्यं बढ़ता जायगा छोर बीच मेः श्रटरष्ुः अकरटित शग रेज पुस्तकें का उपयोग सर्वधा नहीं दटेगा । भस्युत श्रच्छी तरह से बह भी साथ साथ रहकर काम ही करेगा । इस रीति से अपनी भाषा की सष्द्धि मी नवीनता श्रोर श्रधिकतो भराक्च करती जायगी ।




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