प्रसाद साहित्य और समीक्षा | Prasad Sahitya Aur Samiksha

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Prasad Sahitya Aur Samiksha by रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रसाद का जीवन | दधिवेदी श्रसिनन्नन ग्रंथ में प्रकाशित हुमा था । 'कामायनी' में उन्होंने वेदों ब्राह्मण- ग्रंथों श्र पुराणों की कथावस्तु प्रौर तथ्य को कुछ इस तरह समेट लिया है कि हम चकित रह जाते है । राखाल दास वनर्जी के एतिहासिक उपन्यासो जेक्सपीश्रर ओ्रौर डी० एल० राय के नाटकों श्रौर उर्दू एवं संस्कृत कवियों की लाक्षणिक अभिव्यजना से भी वह सूक्ष्म रूप से परिचित हैं । रवि बाबू के संपूर्ण साहित्य का उनका श्रध्ययन विस्तृत जान पड़ता है । कदाचिंतु गीतांजलि के श्र गरेजी संस्करण से... प्रभावित होकर उन्होंने गद्य-गीत भी लिखे थे । वाद में इन्हें उन्होंने कहानियों श्रौर उपन्यासों में मूथ कर कानन-कुसुम' के पद्यों का निर्माण किया । रवीन्द्र की कहानियों की भावुकता, हर काव्यात्मक वातावरण, उनकी साहित्य व्यंग-कला उन्होने श्रपनी कहानियों में ग्रपनाई है श्रौर चित्रण की जो सुक्ष्मता श्रौर विद्वदता हमें “तितली ' में मिलती है वह रवि बाबू के उपन्यासों को छोड़कर श्रौर कटं नहीं मिलती । फिर भी सब कुछ 'प्रसाद के श्रपने व्यक्तित्व और उनकी श्रपनी साहित्य-साधना में तपकर उनमें इतना एकरूप हो गया है कि उन्हें पढ़ते हुए हमें रवीन्द्र की कोई विशिष्ट रचना याद नहीं ्राती-- सब पर प्रसादत्व की झ्रमिट छाप है । रवीन्द्रनाथ का साहित्य श्रप्रतिम है । न श्राकार में, न प्रकार में, न सामय में -इस युग के किसी एक भारतीय साहित्यिक का साहित्य उनके समकक्ष नहीं रखा जा सकता । उनमें एक. साथ कालिदास,...िड्यपद्ति, कबीर, दोली, विक्टर ह्य गो, ताल्सताय, श्र मोपासां एकाकार हो गये जान पड़ते हैं ।- अपने ६४५ वर्षों के साहित्यिक जीदन में रवीत्द्र कई जीवन जिये । वह प्राचीनों में प्राचीन ओर पणं भ्राधुनिक है । नवनवोन्मेषिनी कान्य-परतिभा श्रौर प्रयोगश्लीला तथा बौद्धिकता का श्रदूभुत सामंजस्य उनकी रचनाओं में हैं । 'प्रसाद' क्या हिंदी के सब श्राधुनिक कला- कार भी मिलकर उन टक नहीं पहुंचते, परन्तु यदि किसी एक कलाकार को हम हिंदी वाले उनके समकक्ष रख सकते हैं तो वह “'्रसाद' ही हैं । दोनों का श्रभिजात्य, सांस्कृ- तिक निष्ठा, कला-भंगिमा, भाषा-सौष्ठव और बौद्धिक एड्वयं समान धरातल पर चलता है । ४६-४७ वर्ष की कच्ची झ्रायु में ही “प्रसाद बीच में से उठ गये । इसे हिंदी का दुर्भाग्य हो कहगे। ` संक्षेप मे, यह रसादः के जीवन श्रौर व्यक्तित्व की सामान्य रूप-रेखा है । काव्य-ल न में उनके एक आर मैथिलीशरण प्त श्र मारतेन्द ह ओर दुसरी श्रोर पत्‌ निराला और महादेवी हैं । कहानी श्रौर उपन्यास के क्षेत्रों में न्साहित्य-कला का आरम्भ इन्हीं से होता है। १९११ में ग्राम शीर्षक उनकी पहली कहानी प्रकाशित हुई । उससे पहले हिंदी में भ्रनूदित कहानियों के प्रतिरिक्त श्रौर क्या था ? उपन्यास के क्षत्र मे वह बाद में आ्राये । परन्तु दोनो क्षेत्रों में प्रेमचंद के समकक्ष परन्तु उनसे भिन्न कथा-कला की प्रतिष्ठा उन्होंने की । आज भी इन दोनों क्षेत्रों में थे दोनों पर-




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