सर्वोदय | Sarwoday
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
642
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१५ 9
८ सवादय
श्नीनारायणदास गांधी अंक जाग्रत खादी-
सेवक हैं। अपने व्यवसायों को करते हभ
भी वे नियमितं रीति मे रोज् लगभग चार
धं बरसोंसे कातने है। भूनक्रा सूत सारे
कुटव के कपडो के लिभ पर्याप्त हो जाता है ।
खादी की शक्ति के अपर अुनका अटल विश्वास
है। मेरी श्रद्धा तो मुन्ने यह तक ले जाती है
कि में खादीप्रचार को दरिद्रनारायण की, और
अुसके द्वारा देश की ,अच्छी-से-अच्छी सेवा समझता
हूं। कोऔ-कोओ कहते हैं कि यह व्यवसाय
मूखंतापूर्ण है, ओर मेरी अत्तरक्रिया के साथ
जिसका भी अंत हो जानेवाला है। जो
व्यवसाय हिदू-पृमलमान कातने-वुननेवासो के
खीसे में लगभग पोच करोड़ रुपया पहुँचाता
हो, वह व्यवसाय यदि. मूखंतापुर्ण समझा
जारे, तौ फिर यह विचारणीय है कि
बुद्धिमत्तापूण किसे कहा जाये ? चाहे जो
हो, मेरी आशा तो यह है कि जिस साहसपूर्ण
कार्यें को पूणं प्रोत्साहन मिलेगा । नारायणदास
का लोभ हर साल बढ़ता ही जाता है।
अजतक तो कवर की कृपा से वे सफल
हु हे । जिस वार पहले वधं के छासठ हजार
के बदल अृन्होंने सतर लाख गज् सूत प्राप्त
करन का लोभ बढ़ा लिया हूं । साधुपुरुपों का
अगस्त
संकल्पबल क्या नहीं कर सकता ? सातसौ
स्वयंसेवक मिल जायें तो रोज प्रत्येक १०००
( अक हजार $ गज कातेगा'। और सात हजार
हों, तो १०० गज ही हरेक के हिस्से में आयेगा ।
यहाँ अधिक संख्या का नियम लागू होता
है। कातनेवालों की संख्या जितनी ही बढ़े
अतना अच्छा । खादी की कल्पना में करोडों
मनष्यो के काम की कल्पनां निहित है, अर्थात्
करोड़ों का सहयोग होना चाहिअं। हिदु-
स्तन मे करोडों मनृष्यरूपी संचे पड़े हुअ
ह। वे वडे-बड़े जड़ यंत्रों के मोहताज नहीं ।
करोडों का सहयोग हो, तो बडे मजे मे
लोग अपने वस्त्र बना लेगे, ओर करोड़ों रुपया
विदेश जाने से बच जायगा, तथा करोडों
मे अपने-आप बट जायगा आशा हं कि
जिस साहृसपूणं कायं को रोग बययेगे, जौर.
अूमे सफल बनयेगे । जो सिक्के जमा होंगे
वह और खादी से जो पैसा मिलेगा वह
काठियावाड के हरिजन-तायें में, खादी-कार्य
में और राजकोट राष्ट्रीय-शाला में बराधर-
बरात्र वट जायगा।
“हरिजन सेवक ' से | मे० क° गांधी
भूल-सुधार
जुलाओ के ' सर्वोदय ' में श्री वित्ोषा के प्रावत में २८ वें १० के दूसरे स्तंभ में यह
बावय है:
ध्यान दिलाया है ।
वाक्य गलत
। अङो जगद् पाञक यद् वाक्य पढ़ें,
सायणाचायं ने जिस संतर काभाप्य करते हुम 'वध' और मृत्यु के मेद की तरफ
वर्धे मौर ' मत्य ' में यद्यपि
सायणाचायं कोजी मेद नही करते तथापि मेरी दष्टि से अन दोनों का भेद अत्यन्त स्पष्ट हे । ”
क स [५।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...