हिन्दी का निखार तथा परिष्कार | Hindi Ka Nikhar Tatha Parishkar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34 MB
कुल पष्ठ :
207
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ हिन्दी का निखार तथा परिष्कार
श्राप कह सकते हँ कि ईसे निखार कंसे कहते हैं ? “गिटीः श्रौर “घोत्ती' श्रादि
को विकृत कहने में प्रमाण क्या है ? प्रमाण हैं । भाषा की नैंसर्गिक श्रौर विकृत-परिष्कृत
रूप का निर्णय करने में (भाषा की) परम्परा, लोक-प्रचलन, भाषा विज्ञान श्ौर व्याकरण
से काम लिया जाता है । वेद-भाषा में, लौकिक संस्कृत में, श्रौर श्राधुनिक माषाश्रों में
ति 'त' श्र 'ती' प्रत्यय दिखाई देते है; “त्ति न्त' 'ती' नहीं । प्राकृत साहित्य में
में वैसे वर्ण-द्वित्त दिखाई देते हैं; परन्तु यह प्राकृत कृत्रिम है; उस समय के साहि
त्यिकों की गढ़ी हुई । हो सकता है कहीं किसी भूमाग के जन किसी दाब्द को बिकृत
करके बोलते हों । पर उनके उस “कंठ-विकार' को श्रादद न मान लिया जाएगा |
लिखा तो है को यदि कोई “लिक्खा तो है” पढ़े-बोले तो उसे कोई श्राद्ध न मान
लेगा; क्योकि लिक्खता है” 'लिक्खना” जैसे उच्चारण वह भी नहीं करता । 'लिक्खा
है बोलने वाला मी श्नन्यत्र 'लिख' घातु का प्रयोग करता है “लिखता है' “लिखना
है' बोलता है । इससे स्पष्ट है कि 'लिक्खा है बोलना उसके कंठ की बिकृति है । जन-
माषा मे “लिक्खा है” चलता भी रहे, पर साहित्यिक भाषा में उसे ग्रहण न किया
जाएगा । साहित्य का क्षेत्र देश तथा काल से सीमित नहीं होता । “रूस श्रौर “प्रमरीका
के लोग लिख धातु के पद “लिखा है 'लिखो' श्रादि में 'क' का श्रागम न करेंगे । भारत
मे भी सवत्र क' का श्रागम नहीं किया जाता ; यद्यपि *रख' घातु के पद राद
को ^रक्खा है' बोलते हैँ । परन्तु वैसा बोलने वाले” भी लिखते हैं--'रखा है ही;
यद्यपि पचीस-तीस वर्ष पहले तक “*रक््खा' लोग लिखते रहे हैं । फ़िर 'रक््खा है' का
संस्कार हुभ्ना । बताया गया कि घातु “रख है; इसलिए *रखा है' लिखना चाहिए ।
जो लोग *क' का श्रागम करके बोलते हैं, वे “रखा है' को ही “रक््खा है' पढ़ लेंगे । बंगाली
विद्वान संस्कृत के (जलं पिवामि का उच्चारण “जोलं पिवार्मि' जैसा करते हैं;
लिखते हैं--“जलं पिवामि” ही। स्थानीय उच्चारण-भेद को साहित्य में प्रकट करने का
उपयोग नहीं किया जाता; क्योकि वह् व्यापक होता है। परन्तु इस उच्चारण-मेद से
उसकी लिखावट नहीं बदलती ।*
अब झाप “धोत्ती लाता है' श्रादि को लें । 'ती' श्रौर 'त' हिन्दी के अपने प्रत्यय
हैं रौर 'हिन्दी संघ की सभी भाषाओं में चलते हैं । *फूरती से काम कर लो' बोला
जाता है “फुरत्तो से' नहीं । *घरती' को कोई “घरत्ती' नहीं बोलता ¦ 'जात्ता है' “श्रात्ता
हैः बोलने वाले मी करता है “पढ़ता है' श्रादि को 'करत्ता है' “पढ़ता है' नहीं बोलते
इससे स्पष्ट है कि कहीं वर्ण-द्वित्व कर देना एक जनपदीय प्रवृत्ति है श्रौर वहाँ वह
स्वाभाविक है 1 वहाँ वह विकार नहीं । परन्तु प्रागे चलकर जब सिखार होता है,
तो चीज कुछ बदल जाती है । ब्रज, राजस्थान, पाव्चाल, झवघ, कुमायूँ, बिहार श्रादि
१. भारतीय भाषा विज्ञान, प० १४३
. रे« हिन्दी शब्द मीमांसा पृ ० २२,२३
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