हिन्दी का निखार तथा परिष्कार | Hindi Ka Nikhar Tatha Parishkar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Hindi Ka Nikhar Tatha Parishkar by शिवप्रसाद शुक्ल - Shivprasad Shukla

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शिवप्रसाद शुक्ल - Shivprasad Shukla

Add Infomation AboutShivprasad Shukla

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१२ हिन्दी का निखार तथा परिष्कार श्राप कह सकते हँ कि ईसे निखार कंसे कहते हैं ? “गिटीः श्रौर “घोत्ती' श्रादि को विकृत कहने में प्रमाण क्या है ? प्रमाण हैं । भाषा की नैंसर्गिक श्रौर विकृत-परिष्कृत रूप का निर्णय करने में (भाषा की) परम्परा, लोक-प्रचलन, भाषा विज्ञान श्ौर व्याकरण से काम लिया जाता है । वेद-भाषा में, लौकिक संस्कृत में, श्रौर श्राधुनिक माषाश्रों में ति 'त' श्र 'ती' प्रत्यय दिखाई देते है; “त्ति न्त' 'ती' नहीं । प्राकृत साहित्य में में वैसे वर्ण-द्वित्त दिखाई देते हैं; परन्तु यह प्राकृत कृत्रिम है; उस समय के साहि त्यिकों की गढ़ी हुई । हो सकता है कहीं किसी भूमाग के जन किसी दाब्द को बिकृत करके बोलते हों । पर उनके उस “कंठ-विकार' को श्रादद न मान लिया जाएगा | लिखा तो है को यदि कोई “लिक्खा तो है” पढ़े-बोले तो उसे कोई श्राद्ध न मान लेगा; क्योकि लिक्खता है” 'लिक्खना” जैसे उच्चारण वह भी नहीं करता । 'लिक्खा है बोलने वाला मी श्नन्यत्र 'लिख' घातु का प्रयोग करता है “लिखता है' “लिखना है' बोलता है । इससे स्पष्ट है कि 'लिक्खा है बोलना उसके कंठ की बिकृति है । जन- माषा मे “लिक्खा है” चलता भी रहे, पर साहित्यिक भाषा में उसे ग्रहण न किया जाएगा । साहित्य का क्षेत्र देश तथा काल से सीमित नहीं होता । “रूस श्रौर “प्रमरीका के लोग लिख धातु के पद “लिखा है 'लिखो' श्रादि में 'क' का श्रागम न करेंगे । भारत मे भी सवत्र क' का श्रागम नहीं किया जाता ; यद्यपि *रख' घातु के पद राद को ^रक्खा है' बोलते हैँ । परन्तु वैसा बोलने वाले” भी लिखते हैं--'रखा है ही; यद्यपि पचीस-तीस वर्ष पहले तक “*रक्‍्खा' लोग लिखते रहे हैं । फ़िर 'रक्‍्खा है' का संस्कार हुभ्ना । बताया गया कि घातु “रख है; इसलिए *रखा है' लिखना चाहिए । जो लोग *क' का श्रागम करके बोलते हैं, वे “रखा है' को ही “रक्‍्खा है' पढ़ लेंगे । बंगाली विद्वान संस्कृत के (जलं पिवामि का उच्चारण “जोलं पिवार्मि' जैसा करते हैं; लिखते हैं--“जलं पिवामि” ही। स्थानीय उच्चारण-भेद को साहित्य में प्रकट करने का उपयोग नहीं किया जाता; क्योकि वह्‌ व्यापक होता है। परन्तु इस उच्चारण-मेद से उसकी लिखावट नहीं बदलती ।* अब झाप “धोत्ती लाता है' श्रादि को लें । 'ती' श्रौर 'त' हिन्दी के अपने प्रत्यय हैं रौर 'हिन्दी संघ की सभी भाषाओं में चलते हैं । *फूरती से काम कर लो' बोला जाता है “फुरत्तो से' नहीं । *घरती' को कोई “घरत्ती' नहीं बोलता ¦ 'जात्ता है' “श्रात्ता हैः बोलने वाले मी करता है “पढ़ता है' श्रादि को 'करत्ता है' “पढ़ता है' नहीं बोलते इससे स्पष्ट है कि कहीं वर्ण-द्वित्व कर देना एक जनपदीय प्रवृत्ति है श्रौर वहाँ वह स्वाभाविक है 1 वहाँ वह विकार नहीं । परन्तु प्रागे चलकर जब सिखार होता है, तो चीज कुछ बदल जाती है । ब्रज, राजस्थान, पाव्चाल, झवघ, कुमायूँ, बिहार श्रादि १. भारतीय भाषा विज्ञान, प० १४३ . रे« हिन्दी शब्द मीमांसा पृ ० २२,२३




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now