आजादी के पर्वाने | Aajadi Ke Parwane
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
433
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( आठ )
भी की गईं । संसार में कदाचित् दी कोई ऐसा महापुरुष हुआ होगा,
जिसने बुराइयों का ऐसा खुला और निर्दोष छान्ठना-रहित उपयोग
किया दो ।
.'प्रंचछिव ध्म नौर विधवासों के विरुद्ध भावाज़ उठाना भौर
खुछ्मखुछा उसका खण्डन करना भी क्रान्ति दी है और इसी कारण
हम ईसामसखीह, शहर, दयानन्द भौर सुक़ुरात को भी.कान्विकारी
समझते दैं । बाव वास्तव में यहीं है। न्याय भौर उदारता के आधार
पर जो. भावाज़ उठाई जाय, व चाहे राजघत्ता के विपरीत हो, चाहे
धर्म समाज के विपरीत; चह चाहे किसी एक व्यक्ति की तरफ़ से दो,
चाहे समस्त जन-साधारण की तरफ़ से, वदद क्रान्ति ही है--पाप कदापि
नरी.
` अब प्रश्न यहहैकि रेष्ठी क्रान्तियों को राजनीति भौर राजर्स
अपराध क्यो मानता है १ आन्त जनता उने क्थों भयभीत होती है?
तत्काछीन॑सत्ताघारी इन मह्ात्मांधों को क्यों कष्ट देते हैं ? जगदूगुस
इंसामसीड को भपराधघी के ऋटहरे में खड़ा करके एक पुरुष ने गरभीरता-
पूचक उसे अपराधी कहकर सुरी पर चढ़वा दिया । महातदर्ी
सुकरात को सामने खडा करके एक विद्धान् न्याथाधिकारी ने उते विष
पी कर मर जाने की आाज्धा दे दी ।
राज्यक्रान्तियों के, अधिक - होने के कुछ भीर सी गम्भीर कारण है ।
बात ऐसी हैं कि राज्यक्रान्तियाँ कभी सिद्धान्तवाद के भाघार पर नहीं:
होती, प्रायः अवसर पर निर्मित होती हैं और उनका प्रयोग सदा इस
ठङ्गःसे प्रिया जाता है, 'कि वे सदा अधिकारी और सत्ताघारियों के दी
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