आजादी के पर्वाने | Aajadi Ke Parwane

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Aajadi Ke Parwane by आर. सहगल - R. Sahgal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( आठ ) भी की गईं । संसार में कदाचित्‌ दी कोई ऐसा महापुरुष हुआ होगा, जिसने बुराइयों का ऐसा खुला और निर्दोष छान्ठना-रहित उपयोग किया दो । .'प्रंचछिव ध्म नौर विधवासों के विरुद्ध भावाज़ उठाना भौर खुछ्मखुछा उसका खण्डन करना भी क्रान्ति दी है और इसी कारण हम ईसामसखीह, शहर, दयानन्द भौर सुक़ुरात को भी.कान्विकारी समझते दैं । बाव वास्तव में यहीं है। न्याय भौर उदारता के आधार पर जो. भावाज़ उठाई जाय, व चाहे राजघत्ता के विपरीत हो, चाहे धर्म समाज के विपरीत; चह चाहे किसी एक व्यक्ति की तरफ़ से दो, चाहे समस्त जन-साधारण की तरफ़ से, वदद क्रान्ति ही है--पाप कदापि नरी. ` अब प्रश्न यहहैकि रेष्ठी क्रान्तियों को राजनीति भौर राजर्स अपराध क्यो मानता है १ आन्त जनता उने क्थों भयभीत होती है? तत्काछीन॑सत्ताघारी इन मह्ात्मांधों को क्यों कष्ट देते हैं ? जगदूगुस इंसामसीड को भपराधघी के ऋटहरे में खड़ा करके एक पुरुष ने गरभीरता- पूचक उसे अपराधी कहकर सुरी पर चढ़वा दिया । महातदर्ी सुकरात को सामने खडा करके एक विद्धान्‌ न्याथाधिकारी ने उते विष पी कर मर जाने की आाज्धा दे दी । राज्यक्रान्तियों के, अधिक - होने के कुछ भीर सी गम्भीर कारण है । बात ऐसी हैं कि राज्यक्रान्तियाँ कभी सिद्धान्तवाद के भाघार पर नहीं: होती, प्रायः अवसर पर निर्मित होती हैं और उनका प्रयोग सदा इस ठङ्गःसे प्रिया जाता है, 'कि वे सदा अधिकारी और सत्ताघारियों के दी




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