प्रणय पत्रिका | Pranay Patrikaa

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Pranay Patrikaa by बच्चन - Bacchan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऋम संख्या ५२. १, ५५. ६. ५७, १८, ५६९. मेरे उर की पीर पुरातन तुम न हरोगे कौन हरेगा आज मलार कहीं तुम छेडे, मेरे नयन भरे आते ह मं दीपक हं, मेरा जलना ही तो मेरा मुसकाना है मेरे अंतर की ज्वाला तुम घर-घर दीप शिखा बन जाओ हे मन के अंगार, अगर तुम लौ न बनोगे, क्षार बनोगे तन के सौ सुख, सौ सुविधा में मेरा मन बनवास दिया-सा तुमको छोड़ कहीं जाने को आज हृदय स्वच्छंद नहीं है १२ पृष्ठ संख्या १२० १२२ १२४ १२६ १२८ १२३० १३२




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