यात्रा और शिकार | Yatra Or Shikar

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Yatra Or Shikar by सत्यकाम वर्मा - Satyakam Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घ्रारम्भ दे कारण जीवन मे श्रधिक बढ़ने श्रौर पनपने में उसकी रुचि न थी । इस पर भी उसके विषय में यह प्रसिद्ध था कि वह अपनी चीज़ों को चाहे कैसे ही बरते, दूसरों का सामान उसके हाथो में सदा सुरक्षित रहता था । इन पहाड़ों पर उसकी वीरता और चिश्ञानेवाजी दोनों ही गजब की रहती थी । फिर भी यह झाइचयें की ही बात है कि बात-बात पर वन्दुक का सट्दारा लेने वाले लोगो के बीच रह कर भी वह कभी किसी के साथ लड़ाई में न उलका था | एकाथ बार उसके भोले स्वभाव को गलत समभ्त कर उसका उलटदा श्र लिया गया, किन्तु इस तासमकी का परिणाम इतना बुरा रहा कि फिर कभी किसी ने उसे ग़लत समकने की कोशिश न की ! उसके चीरतापूर्ण स्वभाव का परिचय इस बात से ही मिल जाता है कि उसके विषय में यह प्रसिद्ध है कि उसने तीस से अधिक सलेटी रंग के भालु मारे है । वह इस वात का जीता-जागता सबूत है कि बिना किसी मदद के भी कोई कँसे बढ़ सकता है । शहर में या जंगल में में अपने सच्चे मित्र हेनरी से बढ़कर ग्रौर किसी श्रधिक अच्छे मनुष्य से न मिल पाया । हम शीघ्र ही इन जगलो और भ्ाड़ियो को पार कर खुले मैदान मे निकल आाए। यहाँ कोई न कोई ावातू श्रादिवासी श्रपने छोटे से ट्टू, पर चढों हुभा गुजरता दीखता । उसने सूती कमीज़ श्रौर चमकीला कम रबन्द पहने होते तथा एक रंगीन रूमाल श्रपने लम्वे वालो पर पीछे की ओर लटकता हु वाँवा होता । दोपहर के समग्र हम मेढको श्रौर कछुग्नो से भरी एक छोटी सी थारा के पास ही श्राराम के लिए रुक गये । यहां पर कभी श्रादिवासियों ने डेरा डाला था, जिसके निशान श्रव भी मौजूद थे । इससे हमे घूप से बचने के लिए जगह झासानी से मिल गई । इसके लिए हमे केवल था कम्बल ही पुराने खण्डहरो पर तानना पडा । छाया करने के वाद हम अपनी काठिया विछाकर बैठ गये । काँ ने पहली वार अपनी मन पसन्द श्रादिवासियों को चिलम जलाई। देस्लारियर बिल्ले हुये कोयलो पर ही बैठ गया । उसने भ्रपनी आखो को एक हाथ से ढका हुआ था और दूसरे हाथ मे एक छोटी छुडी पकडी हुई थी । इस छड़ी से ही सामने के वतन में तली जाती हुईं चीजों को वह हिलाता जा रहा था ! घोडो को पास की ही चरागाह में, विखरी हुई काड़ियों के वीच मे, चरने के लिए छोड़ दिया गया था । हवा कुछ भारी




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