सौंदर्य शास्त्र | Saundarya Shastra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Saundarya Shastra by डॉ हरद्वारी लाल शर्मा - Dr. Hardwari Lal Sharma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ हरद्वारी लाल शर्मा - Dr. Hardwari Lal Sharma

Add Infomation AboutDr. Hardwari Lal Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
8 सौन्दय-शास्त्र नवीन प्रदेशो मे रमण करतेर्ह। हमारे विचार और भावभी हमे तल्लीन करने मे समथ होते है । अपने दैनिक जीवन मे प्रत्यक्ष आदि का उपयोग प्रवृत्तियो की सफलता के लिये किया जाताहै। हम सूर्योदय देखकर काय में लग जाते है, विद्यत्‌ की चमचमाहुट देखकर शीघ्र सुरक्षित स्थान मे चले जाते है, कल्पना की सहायता से योजनाएँ बनाते है। परन्तु जत्र कभी सूर्योदय और वित्‌ का साक्षात्‌ अनुभव, कल्पना, स्मृति, विचार और भावना प्रवृत्ति को जन्मन देकर अपने रंग रूप भादि चिशेष गुणों के द्वारा केवल भोग भोर रस का उद्दक करते हैं, तो इमारे जगत की ये साधारण वस्तुएँ अदृभृत आनन्द के मूलख्रोत-सी प्रतीत होने लगती हैं । उस समय हम इनको सुन्दर” कहते है। सु दर वस्तुओ के इस सौत्दय से हृदय आश्वलाद पाता है जीवन की साधारण प्रव त्तिया कुछ समय के लिये स्थगित हो जाती है सघष रुक जाने से मन ओर शरीर की प्रणालिकाओ मे नवीन रस का सचार होता हुआ प्रतीत होता है, भर भाखो मे आनन्द के आँसू उमड उठते है। हमारी यह अनुभूति किसी वस्तु की अनुभूति से उत्पन्न आनन्द का नाम है । अपनी अनुभूति--प्रत्यक्ष स्मृति, कल्पना आदि--द्वारा आन“द को उत्पन्न करने वाले वस्तु के गुण को 'सौन्दय' ओर उस वस्तु को “सुन्दर' कहते हैं । सौन्दय का अनुभव व्यापक और महृत्त्वपण है। इससे हृदय सरस और जीवन उपर होता है, बुद्धि को नवीन चेतना और कल्पना को सजीवता प्राप्त होती है। इस महृतत्वपृण अनुभूति का अनुशीलन करने, इसके स्वरूप और स्वभाव को समझने, जीवन की दूसरी अनुभूतियो के साथ इसका सम्बन्ध स्पष्ट करने तथा इसकी पुष्ट भौर रचनात्मक शक्ति को समझने के लिये जिससे कला का जन्म होता है हमें एक विशेष विचार-माला की भावश्यकता होती है । इस व्यवस्थित विचार-माला को हम सौ दयं-शास्त्र' कहते है । सौन्दय-शास्त्र सौन्दय की शास्त्रीय विवेचना है! यदि हम सुन्दर वस्तु को प्राकृतिक जगत की” वस्तु मानकर निरीक्षण, प्रयोग आदि द्वारा उसके गुणो का विष्लेषण करें, और सुन्दर कही जाने वाली वस्तुओ के सम्बन्ध मे सामान्य नियमो की गवेषणा करे, तो हमारे प्रयत्न से सौत्दय -विज्ञान' प्राप्त होगा । उदाहरणाथं हम आकाश, हरे वन, जल-विस्तार, दूर तक फंले हुए सेतो गौर मेदानोकोसुदरः कहते हँ । इन वस्तुभोके विश्लेश्ण से एक बात स्पष्ट जानी जाती है कि ये प्रिय लगने वाले रगोके विशाल भौर विस्तृत पदाथ हैं । इनकी विशालता भर तरलता में हमारे जीवन की प्रतिध्वनि मिलती है । अत हमे ये सुन्दर प्रतीत होते हैं । अतएव सौन्दर्य विज्ञान का निर्णय है कि वस्तुओ की




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now