सूर - समीक्षा | Sur Samiksha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
259
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)० सूर-समीक्षा
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रौर दसी से, यह उसी के समान जन-साधारण केही लिये अधिक
मनारंजक होता है । काव्यापक्ष के लगभग अवसान काल में ही ऐसे
काव्य का प्रचार विशेष प्रधानता श्रौर प्रचुरता से दुश्रा है श्रौर इसी
लिए इस समय काव्य की परिभाषा भी प्राचीन परिभाषा के समक्ष गिर
. सी गई है श्रोर केवल रसात्मक वाक्य के रूप में ही रद गई है ।
तृतीय श्रेरी का काव्य वह है जिसमे मनेवृत्तियों श्रौर भावनाश्रों
कें बहुत पुर ग्रौर प्रबल प्रधानता तो नहींदी जाती वरन् बुद्धि-
तत्व को ही कुछ अधिक विशेषता दो जाती है श्रर्थात् जिसमें बौद्धिक
विकास श्रौर ज्ञान-प्रकाश का प्रावल्य रहता है। हाँ, रसात्मकता की _
धारा भी उसमें प्रवाहित रहती है, क्योंकि जैसा कदा जा चुका है,
वोद्धिक श्रानन्द ही वास्तव में रस है । इस प्रकार के काव्य में जग-
जीवन और जीव नेश प्रभु से सम्बन्ध रखने वाले वास्तविक तथ्यों
का सुन्दरता से निरूपण किया जाता है।
त्कृष्ट श्रेणी का काव्य तो वही है जिसमें त्त दोनों ही तत्वों
का सुन्दर सुखद समन्वय किया जाता है, अर्थात् जिससे मनुष्य की
वोध-वृत्ति श्रौर मावना-वृत्ति दोनों दी के यधथेष्ट रूप में संतोष प्राप्त
होता है आर जिसमें दोनों सावंकालीन सावदेशीय श्रनुभूति-तथ्य समा-
विष्ट रहते हँ । इन दोनों पत्तों का समन्वय-सौष्ठव ही काव्य-कला का
उत्क्ष्ट स्वरूप है । इसलिए ऐसे काव्य में कला का पत्त मी सर्वथा सर्वत्र
व्यास श्औौर स्पष्ट सा रहता है श्रर्थात् इसमें दृदय-पक्त, बुद्धि-पन्त और
कला-पन् तीनो ही का यथोचित मात्रा से समन्वय होता है । यही सत्
काव्य का मूल लक्षण कहा गया है । यदि इसी के साथ ही संगीत तत्व
का भी समावेश उसमें हो जाये तो काव्य की चमत्कृत चारुता और
भी श्रधिक है जाती है, क्योकि इसमे काई मी सन्देह नहीं किं संगीत,
जो स्वर-साम्य श्थवा नाद-साम्य पर समाधारित हो कर मन और
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