कसक | Kasak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“तेरा कहा मैं मान लेती फँज़ ! पर**” “अगर भाभी तुम्हारा दिल नहीं करता तो न सही 1 **” “यह वात नहीं फंज़ ! यह तो पता नहीं मेरी कौन-सी किस्मत है जो तेरे बालिद ने मुझे याद किया है ।'*'पर * डरती. हूं, यह मेरी - किस्मत फिर मेरे साथ कोई धोखा कर जाएगी ।” जैनिव वीवी ने कहा, पर एक श्राह भरकर ग्रपने कपडे श्रादि सम्भाल लिए श्रौर ग्रपनी वेदी सराज को गोद में उठा लिया । _... ताज साहिब के मकान का रंग ही वदल गया । बाहर की वड़ी . बैठक एक हफ्ता वाद श्रखवार का दफ्तर वन गई श्रौर भ्रन्दर के छोटे. ` दो कमरे घर वन गए ! बाहर फज्‌ श्रपने उस्ताद के साथ सिलर्कर कितावत करता ग्रौर श्नन्दर जनिव वीवी घर के काम में लगी रहती 1 “ “““ उरती हं, यह्‌ मेरी किस्मत फिर मेरे साथ कोई धोखा कर - जाएगी 1” कुद ही महीनों मे जेनिव वीवी का यह्‌ उर सच हौ गया । ताज साहिव पिले पंद्रह दिन से म्रलीपुर गए हुए थे--उसं के मेले पर । वै जव लौटेतो उनके साथ एक श्रौर श्रौरत थी । पिछले कु दिनों से ताज साहिव का एक दोस्त इस रह्रमें श्राया ह्ग्रा था । कभी किसी समय वह ताज साहिव की बैठक में भी श्रा जाया करता धा। एक दिन झ्राया तो ताज साहिव कहीं वाहर गए हुए थे । उसने हाथ में पेन्सिल पकड़ी श्रौर सामने पड़े हुए एक खाली कागज़ पर एक श्रौरत का स्केच वना दिया । यह ग्रौरत का प्रोफाइल था-- उसका एक पक्ष । फौज ने देखा श्रौर देखता ही रह गया । “दो-तीन मिनट लकीरें खींचीं श्रौर ऐसी शक्ल बन गई ।' आज उसके मन के पानी में एक लहर उठी । वालिद साहिव का वह दोस्त चला गया । जाते समय उस कागज को वहीं छोड गया जसे यह कोई इतनी वड़ी वात नहीं थी 1 फंजने हैरान होकर वह॒ कागज उठा लिया श्र फिर किसी पुस्तक मे संभाल




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