वीर शासन के प्रभावक आचार्य | Veer Shasan Ka Prabhaok Acharaya

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Veer Sasan Ka Prabhaok Acharaya by कस्तूरचंद कासलीबल - Kastoorchand Kasliwalविद्याधर जोहरापुरकर- Vidyadhar Joharapurkar

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विद्याधर जोहरापुरकर- Vidyadhar Joharapurkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाये--गुरु के नाम के साथ शिष्य का गोत्रनाम जोड दिया । केही-कही सुधम का दूसरा नाम लोहाय था ऐसा वर्णन भी मिलता है । जम्बू सुधम के प्रधान शिष्य जम्बू अन्तिम केवलज्ञानी के रूप में प्रसिद्ध है इनका जीवन पुराण-कथामो का विषय बन गया है । वसुदेवहिण्डी और उत्तरपुराण में इनकी कथा मिलती है । प्राकृत में गुणपाल का, अपभ्रद् में वीर कवि का तथा सस्कृत में राजमल्ल का जम्बूस्वामीचरित प्रकाशित हो चुका है ।' मगघ प्रदेय की राजधानी राजगृह के एक श्रेष्टिकुल मे जम्बू का जनम हुआ था । अल्प वय मेँ ही सुधमं का धर्मोपदेश सुनकर वे विरक्त हुए । परिवार के छोगो के आग्रह्‌ से उन्होने विवाह तो किया किन्तु शीघ्र ही अपने सकल्प के अनुसार मुनिदीक्षा छी । इस अवसर पर अनुराग और वैराग्य की तुलना उनकी पत्नियों के साथ हुए वार्तालाप के माध्यम से उनके चरित्र-लेखको ने विस्तार से की है । अनेक सुन्दर कथाएँ इस प्रसंग मे समाविष्ट हुई है । सुधम के निर्वाण के बाद जम्बू केवलज्ञानी हुए तथा लगभग चालीस वष के बिहार के बाद विपुल पर्वत पर उनका निर्वाण हुमा । विष्णुनन्वि ओरं प्रभव जम्बृस्वामी के दो उत्तराधिकारियो का वणन मिलता है। तिलोयपण्णत्ती आदि की परम्परानुसार जम्बूस्वामी के बाद विष्णुनन्दि आचाय हुए । ये श्रुतकेवी भर्थातु बारह अग ग्रन्थो के सम्पूणं ज्ञान के धारकं थे । जम्बूस्वामी-चरितो में तथा कल्पसूत्र, नन्दीसूत्र आदि में जम्बूस्वामी के एक ओौर रिष्य प्रभव का परिचय मिलता ह । ये विन्घ्यपर्वतीय प्रदेश के एक राजकुल में उत्पन्न हुए थे किन्तु सयोग से चोरों के गिरोह में शामिल हो गये थे । जम्बूस्वामी का वैराग्य देखकर ये प्रभावित हृए भौर उन्ही के साथ मुनि हुए । गुरं के निर्वाण के बाद लगभग चालीस वष इन्होने मूनिसध का नेतुख किया । अपने पाँच सौ सहयोगियों के साथ वे एक बार मथुरा नगर के समीप ठहरे थे। कथा के अनुसार एक व्यन्तर देवी ने उन्हें उस स्थान से चले जाने को कहा किन्तु सुर्यास्त के बाद विहार करना साधुओ के लिए अनुचित हैं ऐसा सोचकर आचाय सघसहित वही घ्यान में लीन हो गये । रात में व्यन्तर देवो द्वारा किये गये भयकर उपसर्ग से उन सबका देहान्त हुभा । उस स्थान पर जैन सघ द्वारा अनेक स्तूपो की स्थापना की गयी थी जिनके अवशेषो से प्राप्त अनेक दिलालेखो का आगे यथास्थान उल्लेख हुआ है । [ हरिषेण के कथाकोदा में प्रभव के स्थान पर प्रमुख आचाय का नाम विच्युच्चर बताया है तथा व्यन्तर-उपसर्ग का स्थान तामलिन्दी बताया है । तामलिन्दी बंगाल के समुद्रतट पर ¢ बन्दरगाह था, यह्‌ अब वामलुक कहुलाता है । 1 १ डो विमलप्रकाशजेन ने अंपभ्रदा जम्बुस्वामीचरित की प्रस्ताबना मे इस विषय से सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन प्रस्तुत किया है। भीवीर निर्वाण सवत्‌ की पहली श्तान्दी ९ र




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