सूर - पद - मालिका | Sur - Pad - malika
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१५
वता है । अनुश्रप्तियों से अकबर से एक बार भेंट को बात अपश्य सुनी जाती
है! अतः '्दमचन्द्र' को व्णमदाम' से एक करना, पिता कै नाभानुन्लय के]
कारण उनका मुसलमान बताया जाना, आदि-अगदि थनी प्रतिष्ठापना ऊ प्रति
अतिरिक्त शाकषेम का निमित्त है
{क २) साहिव्यलहरी वालि इस पद मे प्रयुक्त शृथूनागते क पाठान्तर भां
मिलते है--पृथुजगाव, पृथु जागते । यनः किसी न जगत का सर्थ नादे क्रमा
और उसे चन्दबरदाई का गोत्र कहा । वारतब मं 'जगात्तिया' घाट पर कर
यसुलने बाले को कहा जाता है । वास्तव में बह शब्द है प्रयुजागत' पुथुयस्-
, (पएृथु-जगोत) कुछ लोगो ने इसे 'पृथुजगोत' शब्द साना है और अधं कियां
है प्रा्धजगोत्र ¦ मुशीसम जीने (काट जौर व्राह्मणः को भिन्न जपति बहौ
माना है--इसलिए उनकी दृष्टि में 'विषनपाथू के जाग को' से उभरते हुए
चिरोधाभास को समाधान भी कर दिया हू 1
(ख) श्री चन्दवेली पाण्डेय ने था. प्र- सभा वाले “सुरसायर' से प्राप्त एके
संख्या २१६ पढ के आधार पर सूर को जाट सिद्ध करना चाहा है। गवेपकों
ने इस आधारभूत पद को उसकी गुर विपरीत गीजस्वी शैली कै गेयरण क्षिप्त
माना हैं और माना है कि यह कार्य किसी आत्मप्रतिष्ठापक का है । सभा के
संस्करण में सिर्देश भी है कि यह पद १८८६ की छपी केवल एक प्रति में है ।
'हुरिजूहों' याते दुखपाव' ।
(ग) मह एक अन्य वर्ग है जो सुर के आत्मनिवेदस-परक अन्तश्साइय भरते
बाले पदों को आधार बनाकर उन्हें ढाढ़ी जाति का सिद्ध करना चाहता है ।
डॉ. ब्रजेश्वर वर्मा का कहूंना है--'उसके अब्नाह्मण होने के उपस्लिखित परोक्ष
संकेतों के साथ कृष्ण-जन्म सम्बस्धी उन पदो के पठने पर, जिनमें उन्होंने अपन
को ढोढ़ी के रूप में कल्पित करके आत्मीयता प्रकट की है--यह अनुमान किया
जा सकता है कि सम्भव है कि वे जाति से ढाढ़ी या जगा हों। प्रमाण मे जो
पक्तियाँ उद्धृत की जाती दै---उनमे से कतिपय निम्नलिखित हैं--
(कै) हों तो तिहारे घर को ढाढ़ी सूरदास मेरी नांद ।
(ख) हूँसि हूँसि दौरि मिले अंकभरि, हुस तुम एकें जाति ।
(ग) हौ तो ति्ारे षर को ढी, नरं सुन सचु पड; -
इस मत को भी मान्यता ' नहीं गिली विपक्ष में कहां जाता हैं कि एक सो
आत्मनिवेदन पर्छ भदे ङी भवना सत्त्यं है--व्यंजक तथ्य असत्य भी हो
सकते हैँ ! दूसरे, अष्टछाप के अस्य कंबि, जिनकी जाति निश्चित हैं. वे भी ढादी
हो जायेगे । उदाहरण के लिंए, कृष्णदास, नन्ददास और चतुर्भुजवास को थी
लिया जा सँकता है--
र
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