कर्तव्य | Kartavy

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Kartavy by गोविन्ददास - Govinddas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ट कर्तव्य खड़े हुए आभूषण पहन रहै ह । सीता पास में एक सुवर्ण के थाल मं आभूषण लिए हुए खड़ी है । राम लगभग २५ वषं के अत्यन्त सुन्दर युवक हे । वर्ण साँवला है । कटि से नीचे पीले रंग का रेदामी अधोवस्त्र धारण किये है । कटि के ऊपर का भाग खुला हुआ है । हाथों में सुवणं के रत्न-जटित वल्य, भुजाओ पर केयूर ओर अंगुलियों में मुद्रिकाएँ धारण किये हं । ललाट पर केदार का तिलक है । सिर के लम्बे केश लहरा रहे है, पर मृछें-दाढ़ी नहीं है । सीता लगभग १८ वषं की गौर वर्ण की अत्यन्त सुन्दर युवती है । नीली रेशमी साड़ी पहने हु, ओर उसी रग का वस्त्र वक्षस्थलं पर बेधा हं । रत्न-जटित आभूषण पहने है । ललाट पर इगुर की टिकली और सांग में सेंदुर है । लम्बे बालों का जुड़ा पीछे बंधा है, जो साडी के वस्त्र से ढँका हूं । पैरो में सहावर लगा है । दोनों के सुख पर हर्घ-युक्‍्त दाति विराज रही है । सीता के नेत्र लज्जा से कुछ नीचे को भुके हुए हें, जो उनकी स्वाभाविक मुद्रा जन पड़ती है 1] राम--(हार पहन चुकते पर कुण्डल पहनते हुए) देखना है, प्रिये, इस भारी उत्तरदायित्व को सँभालने और अपने कतंब्य को पणं करने मे मे कहँ तक कृतकृत्य होता हूँ । दायित्व ग्रहण करने के लिए एक पहुर ही तो दोष है, मैथिली । सीता--हॉ, नाथ, केवल एक पहर । सफलता के सम्बन्ध मे प्रदन ही निरथेक है, आयेंपुत्र । यदि ससार मे आपको ही अपने कतंब्य में सफलता न मिली तो अन्य को मिलना तो असम्भव हैं । रास--(किरोट लगाते हुए) परन्तु, वैदेही, किसी कार्यं का उत्तर- दायित्व सँभालने के पुवं वह्‌ कायं जितना सरल जान पडता है उतना, दायित्व ग्रहण करने के पब्चात्‌ नही । महर्षि विश्वामित्र की यज्ञ-रक्षा




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