पिया सामाजिक उपन्यास | Piya Samajik Upanyas

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Piya Samajik Upanyas  by उषादेवी मित्रा - Ushadevi Mitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2६ पिया १५ मिसेज्ञ शापुरजी ग्र धिक चिन्तित-खी दिखने लगी, खुकान्त से बोलीं मिस्टर चटर्जी, अभी से 'केयर” लें, लड़कों दिन-पर-दिन सूख रही है | 'कैसी मुश्किल है ! रोग कैसा ? दिन-दिन तो मोटी हो रहो हूँ, में नम निश्चिन्त रहो, मैं अच्छी हूँ । और यदि स्वास्थ्य बिगड़ता, तो काका उसे पहले जान लेते । ---पिया ने क्रोध, विरक्ति को दबाना तो सीखा ही न शा, फिर ऐसा कहने के सिवा वह करती क्या? मिसेज़ शापुरजी का चेहरा पीला पड़ गया | 'काका, “टाइगर” शब बिल्ली-जेंसा सीधा हो गया है, श्रब चढ़ना तुम उसपर |? पिया के निकट बैठकर परम श्रादर से सुकान्त उसके बालो को सुलभाने लगे--चढ़गा बिटिया ! जानते हो विभूति, उस दुदान्तघाड को पिया ने कुत्त -जैसा वश में कर लिया है । मैं तो उसके पास जाते डरता था | फिरलइकी मी कैसी है, मिस्टर चटर्जी, घाड़ की कोन करे, शेर भी उससे डारगा । उस दिन इसने एक सालजर की चाबुक से खबर ली | ्रार ष्क दिन इसने हमें शराबी के हाथ से बचाया ।”--उत्तर दिया मिसज् शापुरजी से | द्वार के बाहर से श्रालक आर रमेश का स्वर सुन पड़ा--दो मिनट ठहरिए मिसेज़ शापुरजी, ऐसी शहर्टरेस्य्गः बातों मं हम मी माग लेना चाहत हैं । नदनदी, श्राप दोनामो श्रा जाइए |--टसकर मिमज्ञ शापुरजी जाली | कुर्सी खींचकर दोनों बैठ गये । य्रालाक ने कहा--ठहारिए, जरा सिगार सुलया लें, नहीं तो मजा न आआरंगा--सिंगार-केस खालकर उसने सुकान्त की त्रार बढ़ा दिया श्रार फिर रमेश तथा विभूति को दिया । सब एक-एक सिंगार उठात ग : शोर घन्परचाद देत गन्‌ | 'य्रव किए, सिसेज्ञ शापुरजी ।---्रालाक ने कहा | 'मोसो को बातों में श्राप पड़े हैं ! मोसी यों हो कह रही थां ।--लस्जित हास्य से पिया बोली | व नहीं कहती वो कहने के लिए मे जो तैयार बैठा हू ।'--सुकान्त -मुस्करा रहे थे |




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