पिया (सामाजिक उपन्यास ) | Piya (Samajik Upanyas)

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Piya (Samajik Upanyas) by उपादेवी मित्रा - Upadevi Mitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पिया श लगते हैं तो वया हुझा । अपनी भाषा में वे पडिन होते हैं । हम देखते हैं कि जानवर दात नहीं कर सकते, विनतु ज़रा ध्यान से उन्हें देखो तो समभ मकोगे कि वह कैसे भापामय हैं, किन्तु जब हम ही न ममभ सके तो वह क्या करें * बेचारे ग्रमहाय प्राणी 1“ परम आदर मे पपीटरा श्रदव-कण्ट मे लिपट गई । 'भगवानदीन पुलक-मुग्ध दृष्टि से उस दृश्य को देखने लगा । पपीहरा हटी । जमीन पर से सोने की मूठ लगी चाउयुक उठा सी । फिर पूद्धा-'साईम क्या ग्रभी भ्रच्ठा नहीं हुआ ** “प्रच्छा है, शायद बल काम पर प्रावे।' श्रच्छातौ भ्रव 'टा्चे' नक्र मेरे साथ चलो । भ्रस्तवल मे इसे बाँध दो वे दोनो चल पढ़ें । नाम तो उसका पपीहरा था, परन्तु लोग पुकारते थे पिया बहकर | पिया अस्तवल से लौटी नो सीघे ड्राइग-रूम में जाकर कोच पर लेट रही । दाम-दासी दौड़े । “इलेक्ट्रिक फैन' खोल दिया गया । कोई दामी जूते-मोजे उतारने में लगी, कोई सिर का पसीना पोछने लगी । एवं ने व्यस्त होकर पूछा-“चाय ले भाऊँ *' नहीं, काका कहाँ है ? कमरे में ।' “के हैं ?' *जी नहीं ।




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