भारत की प्राचीन संस्कृति | Bhaarat Kii Praachiin sanskriti

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Bhaarat Kii Praachiin sanskriti by रामजी उपाध्याय - Ramji Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र भारतकी प्राचीन संस्कृति भ्रथवा वल्कल धारण करनेकी व्यवस्था दी गई । इस देगमें रहनेके लिये बहुत सुरक्षित श्रौर दृढ़ घरकी भी श्रावद्यकता नहीं पडती हं । बहुत प्राचीन कालसे लेकर ग्राजतक पत्ते प्रौर फूसके भोपडं बनते प्राये ह । यदि किसीने चाहा तो ग्रपनी रात्रि खले भ्राकाशके नीचे ही बिता ली । उपज जलवायुकी भांति उपजका प्रभाव भारतीय जीवन पर पड़ा हं । जलवायु तो नोगोको सरल जीवनके लिये श्रवसर प्रदान करती है, किन्तु उपज भोगविलासके सारे साधन श्रनायास ही प्रस्तुत कर देती है । एसी परिस्थितिमें एक श्रोरतो विना घर-द्रारका दिगम्बर जैन सन्यासी विरवकी सारी विभूतियोको छोडकर प्रसन्न रह सक्ता हं श्र दूसरी ओ्रोर ग्रभ्रंकष प्रासादके भोगविलासमे लिप्त किसी सम्राट्‌का एेशवयं दिखाई पडता है । जलवायु प्रौर उपजकी सुविधाग्रोके कारण जीवनक विविध व्यवस्थायें प्रचलित हो सकी हं । उपजके वाहृल्यके कारण लोगोका आर्थिक जीवन प्राचीन कानमे प्रायः सुग्बी रहा । खेतीसे विविध प्रकारके ्रन्न, मूल श्रौर फल, भूगर्भसे वहुमूल्य धातु श्र रत्न तथा समृद्रसे मोतियोकौ प्राप्ति होती आई है । इस प्रकार प्राकृतिक सुविधाग्रोके बीच लोगोको प्रभीष्ट व्यवसाय करनेका अवसर मिला ह । उत्पा- दनकी श्रधिकता होनेपर भारतवासियोने जल भ्रौर स्थल मागेसे विदेशोके साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किया । समृद्धि भारतवर्षको धनी वनानेमें प्रकृतिने पूरा सहयोग दिया है । हिमालय श्रौर समृद्रके बीचका विशाल भारत प्रायः सरवेत्र हरा-मरा है । तनिक भी श्रम करने- पर निवासियोके लिये पर्याप्त मात्रामें भोजन श्रौर वस्त्रकी प्राप्ति हो जाती थी । भारत सुख श्रौर समद्धिसे सदेव परिपूर्ण रहा हे । प्राचीन कालमें इस देशके कोने-कोनेमें शान्ति विराजती थी । यहांके घने वनों, नदियो, निभ॑रों, जलाशयो भर पवतश्शंगोंके बीच प्राकृतिक सुषमा श्रौर शान्तिका साम्राज्य रहा है । प्रकृतिकी श्रध्यक्षतामं इसीके भ्रनुरूप आध्यात्मिक श्रौर दार्शनिक ज्ञान प्रस्फूटित हुआ्ना, कलाकारोंकी कलायें विकसित हुई श्रौर महापुरुषोंके उदार विचार श्रौर शिष्टाचारकी प्रगति हुई ।




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