राजस्व | Rajasv

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Rajasv by भगवानदास केला - Bhagwandas Kela

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विपय-प्रवेश ११ क़ानून बनाए जाते हैं, श्रौर, नागरिक इन क्रानूनो पर श्रमल कर, इस बात की व्यवस्था की जाती है। जो व्यक्ति क़ानूनों को भंग करते हैं उन की गिरफ़्तारी के लिए पुल्धिस का, तथा उन के संबंध में विचार करने के लिए न्यायालयों का, तथा उन्ह दंड देने के लिए जेलों का प्रबंध किया जाता है । जन-दहितकारी काय--नागरिकों की नेतिक तथा शर्थिक उन्नति के लिए यह श्रावश्यक है कि उन का अज्ञानांधकार दूर किया जाय, उन्हं तरह-तरह की शिक्षा दी जाय, उन के स्वास्थ्य तथा चिकित्सा के जिए विविध श्रायोजन किए जायं । उन्हें खेती तथा उद्योग-धंर्धो की विविध सुविधाएं दीजायं । उन के क्रय विक्रय श्रादि के लिए मुद्रा और टकसाल श्रादि की मी व्यवस्था हानी अयावश्यक है। सरकार फे इन कार्यो मे जन-हितकारिता का विचार मुख्य रहता है । इस प्रकार के कुछ श्रन्य काय भूगभं, वनस्पति, जीव-विया, मनुष्य-गणना, झझकाल-रज्ञा हैं । इस के शतिरिक्त कद्दीं-कह्दीं राज्य बेकार ऑर बीमार नागरिकों की श्रार्थिक सहायता का प्रबन्ध करता है, तथा बुढ़ापे की पेन्शन की भी व्यवस्था करता हें । व्यवसायिक काय--सरकार जनता के लिए बड़ी-बड़ी पूंजी लगा कर कुछ ऐसे कार्य भी करती है, जिन्हें नागरिकों को श्रलग-अलग करने की सुविधा नहीं होती । इन कार्यो का संचालन इस प्रकार किया जाता है कि इन का छाचे उन से ही निकल शझाए श्रौर थोडा-बहुत लाम हा तो वह्‌ श्रन्य कार्यों में लगाया जा सके । उदाहरणाथ देश में रेख, डाक, तार का प्रबंध करना, श्राबपाशी के लिए नहर निकालना, जंग कल, खानों झादि की रक्षा श्चौर सम्यक्‌ उपयोग करना श्रादि। भारतवप में राज्य के का्य--देश-रक्षा तथा शांति भौर सुव्य- वस्था के थ्रतिरिक्त, राज्य के श्रन्य कार्य भिन्न-भिन्न देशों की




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