आत्म - वेदना | Aatm Vedana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
94
श्रेणी :
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No Information available about प॰ पद्मकान्त जी मालवीय - P. Padmkant Ji Malaviy
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १० )
मनुष्य भावनाओं का पुतला है। प्रेम ओर घृणा कौ भावनाय
अन्य भावनाओं से अधिक बलवती होतो हैं । अलौकिक पुरुषों
के अतिरिक्त साधारण मनुष्य इन दोनों भावनाओं से प्रेरित
हो कर ही संसार मे जोवन यापन करते ह । प्रेम ओर वासनां
विभिन्न वस्तुयं नदीं है । वासना-रहित प्रेम की बात मिथ्या,
असाध्य ओर तपस्वियों ओर योगियों के स्वप्न की बात रै । खाथ
ही कोरो वासना अल्यासक्ति की परिायक है ओर वह मय॒ष्य
को रोण कीओर ठकेटती हे । प्रम मै वासना सन्निहित है ।
प्र्-सम्बन्धी कविताओं मे इसलिये वासना का आभास पाटकां
को मिलता है । यह स्वाभाविक भी है । यदि हम प्रेम कौ भावनां
को घृणा की दृष्टि से नहीं देखते तो कोई कारण नहीं कि हम
वासना को नीच और देय दृष्टि से देखे । वासना ओर उसके
व्यक्तीकरण ( 21८55107 ) ही मे वास्तविक सोन्दयं है ।
दुसरा आक्षेप भापा-संबन्धो है । इस संबन्ध में मेरा कहना
पिर भी यही है कि लिखने और बोलने की भाषा में अत्यधिक
भेद उसको उन्नति के माम मे बाधक है । हिन्दी में मिठास लाने
के नाम पर संस्कृत दाब्दों की भरमार अत्यन्त अनुचित तथा
गर्हित कायं हे ।
काव्य की भाषा
स॒न्द्रता ही वस्तुओं की जान हें, फिर वह चाहे सोने की
स॒न्द्रता हो या मिट्टी को, खिलती दुई उषा की या घनीभूत
भयंकर तूफान की, हिव की या प्रलयंकर की । पुष्प भी अपनी
खन्दरता रखते ह ओर महान् पाप भी । जो घस्तु भो अन्तरात्मा
में निहित प्रकृति के अनुसार पूर्णतया व्यक्त है--विकसित है--
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