गुरुदत्त लेखावली | Gurudatt Lekhavali

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : गुरुदत्त लेखावली  - Gurudatt Lekhavali

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. भगवद्दत्त - Pt. Bhagavadatta

Add Infomation About. Pt. Bhagavadatta

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
डकोद्ास | हे १९ 1 दिया । हम ने पण्डितजी फे ष्क पकः शाब्द का सलुवाद्र किया है. । भुलकी फोर मी घात न्दी छोड़ी, गौरः नं री अपनी जोर से कोई नया विपय बढ़ाया दै! पण्डित खुर्द ख यदुत षडे विदान्‌ ये । उनकी लेखनी में अद्भुत और भश्चर्यकारिणी शक्ति थी । वे चिशान के प्रोफेर ( मदोपाध्याय ) थे । इसल्लिए, स्थर स्थल पर उसके निरवधों में चिझोपतः चेदन-वाक्यों में-छ्ि चैशानिक थावें मिलती हैं ' उन के चिचार अत्यन्त गहन और गम्भीर हैं.। अतपच इस अनुवाद में हम यड़ी वड़ी फठिनाइयों का सामना फरना पड़ा है । इस वात को .बद्ी लोग अच्छी तरु समद खगे जिन को कमो इस्त प्रकार की क्लिप और: गम्मीर-चिवेचेना-पूर्ण पुस्तक के अनुवाद फरने का समय आया छोगा। 4 दस मलुवाच्‌ मे भाषा के खौन्दय परः हम ने अधिक ध्यान नहीं दिया 1 हां, यथाशक्ति हर प्रकार से माथा को सरल और सब की समझ में आने योग्य चनाने का यल किया है । फिर भी विवश होकर हमे बहुत से स्थटो पर्‌ संस्रूत के कठिन शत्दों फा प्रयोग करना पड़ा है परः मूलः लेखक कती भाषा इतनी किए, चह्वर्थर्गर्सि है: ध्तौर उसके थाफ्य इतने लस्वे और जटिल हैं थि श्म इस यल में थडुत फम सफलता शुई है । उर्दू में जो भनुवाद मिलते हैं उनकी भाषा सी पसी किए हैं कि फारसी के च्छे खसे मौलवी के चिना वह्‌ भैर किसी फी स्मघा में कठिसता से ही भा सकती है. । उर्दू, और: आद्करेडी फी क्िटता का ध्यान फ़रके यदि दम भपने धनबाद फी भाषा को सीधी खादी फह दें तो कुछ भी अत्युक्ति न होगी | भस्तु भाषा चाहे केसी टौ अभिप्राय समझ में आजाना चाहिए । इसल्प इमने सापा-सौन्दर्य को गौण रम्तकर मूल के भाव को ठीक ठीक उतारने की दी चेछा की है । भनुवाद की फठिनता ष्टो अद्करेजी पुस्त की शरपए-स्रम्बन्धी अश्णद्धिःयो ने व्यौरः चतम दिया है । शस पुस्तक फी भ्रकादिष्ा, द्यी शार्यन भिन्िद्ध, प्पण्ड पष्िंदिज़ कम्पनी ने इसके घरफादान में ज़रा भी परिश्रम किया प्रतीत नहीं होता । पुस्तक फा कोई मी पृष्ठ पेसा नहीं जिस में दस बीस अशुद्धियां न हों ॥ कष ध्यर्लोभतो पृष्ठ सयैथा उट पट करटा के कटी छप गये हैं । भ्रफ की अद्युच्विःयां इतनी मारी मारी रैः कि शद्ध पारु का पता खगानेभे वद्धी कटिचता होती है. । जाये पुस्तकों के प्रकादाफों के लिप: पेस्ती जस्वावघानता सैथ अकध्षन्तब्य है, क्योकि इस से पुस्तक की उपयोगिता बहुत घट जाती है । भङ्क- रेङी पुस्तके जसी शुद्धः ओर खुन्वर आजकल छपती है उसका विचार करके यह कहने में तनिक भी सङ्के नर्हा होता कि येखी गन्द सपौरः लुणु छपी हुई पुस्तक फो कोई भी अङ्के भाषा भाषी हाथ लगाना पसन्द न करेगा । इस लिष्द हमारे पुस्तक भकाश्रकों को छपा की अद्युद्धियो को दूर करने का चिद्रोष जय करस्ना अदिष्ः १ ~ ज




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now