सत्य की खोज | Satya Ki Khojh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सत्य क्या है - १३
उसे उसी वचपन ने दिये । वह श्रविद्या से भरे नहीं ता श्रौर क्या
हो सकते थे ?
एक झ्रापवीती श्रौर सुनिये !
मैं जव छोटा था, तो मेरी माँ मेरे बीमार पड़नि पर मेरा
इलाज भी करती थीं । क्योंकि वे नाड़ी देखना बहुत ्रच्छ
जानती थीं श्रौर दवा-दारू करना कामचलाऊ । वे जादू-टोना भी
करती थीं, उसमें भी उनका विद्वास था । एक तरह से वह
हन्दू-मुसलमान, जैन श्र बुद्धवादी सभी की खिचड़ी थीं ।
उनको 'समभावी' भी कह सकते हैं ।
जादू-टोना यह होता था कि मेरे वीमार पड़ने पर कुछ
पैसे वह मेरे ऊपर फेरकर कहीं ताक में रख देती थीं ग्रौर मेरे
ग्रच्छे होने पर उन पैसों की मिठाई मँगाकर वाँट दी जाती
थी । मँ जव इतना वड़ा हुश्रा कि ताक में पांव रख खटी पकड़
उपर के ताकसेवे पैसेले सक, तो उन्हें यह् मौकाहीनदेता
था कि उन पैसों की मिठाई बाँटी जा सके । उनकी मिठाई मैं
खुद खा जाता था ग्रौर भ्रपने साथियों को भी वाँट देता था । यह
जानकर माँ मुक्त पर वहुत मीठी नाराजी दिखा उसे एकदम
खुला देती थीं । ऐसा कभी न करतीं कि श्रौर पैसे की मिठाई
मंगायी जाय श्रौर वाँटी जाय ।
धीरे-धीरे यह जादू-टोना भी माँ के दिमाग से कम
होता गया ।
एक वार मेरे गलसुए फुल गये । जादू-टोने के रूप में
माँ ने मिट्टी की पाँच गोलियाँ वनाकर श्रौर मेरी कृनपटी पर
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