आचार्य सन्त भीखणजी | Achary Sant Bhikhanji

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Achary Sant Bhikhanji by श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० आचाय संतं भौ्रणसी भि सप्रषट त्यायियोँ के ुक्टमणी दथा तत्वज्ञान ओर अखयड आत्म~ज्योतिकर धारक महापुरूष अवश्य निकले । दीपॉयाई ने आखिर दीक्षाकी शनुमति दे दी। शपते वंधन्य जीवन लि मात्र सहारे और हुछारे पुन्रको इस प्रकार दीक्षा की अनुमति देकर दीपों- बाईने जिस साइस शोर धमप्रेम की भावमाका परिचय दिया बह एक मदान्‌ साताके अनुरूप ही था 1 उनकी यदद स्योछावर हुनिया को प्क कितनी धषी इन थी इसका जामास पाठकों को आगे जाकर होगा । दीक्षा लेत समय संत सीसणजीन करीब १०००) रपये अपनों माताके पास छोड़े । ~ संह मीखणजीकी दीक्षा बगदी धाइर में हुई । आचार्य रुधनाथजीने खुद अपन दायने उर दीक्षा दी । उस समय संत सीसणभी की अवस्था ९५ चथ की थी । इस तरह ३५ यर्थ का बह तेजस्वी युवक अद्‌ सुत वैराग्य भावमा्गेति उच्छदासित हो स्याग मार्ग का वीड़ा उठा निननेयशके मार्ग पर भपसर दुआ 1




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