दार्शनिक विवेचनाएँ | Darshnik Vivechnaen

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Darshnik Vivechnaen  by प्रो. श्री हरिमोहन झा - Prof. Shri Harimohan JHa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतीय दर्शन और आधुनिक परिप्रेक्ष्य 3 संचित-प्रारव्ध रूपी कमंफलवाला सिद्धान्त पुर्वजन्म पर आश्रित है। जमान्तरवाद खंडित होने से वह भी खंडित हो जाता है। और, इनके विना मोक्ष काथ दही क्या रहं जायगा ? जब कमंबन्घन और आवागमन का चक्र हौ नही, तव फिर निष्कृति या चुटक्रारा किससे ? इस प्रकार, आत्मा की भित्ति टूट जाने से पुनजेन्म, कर्म और मोक्ष की संपूर्ण अट्टालिका ही ढह जाती है । यह अनात्मचाद आज के विज्ञान में घर किये हुए है। शरीर-विज्ञान, जीव- विज्ञान, मनोविज्ञान, कोई भी “आत्मा का नाम नहीं लेता । दर्शन के क्षेत्र में भी आत्मा पर ताकिक प्रत्यक्षवाद (1०8५2 ?०अ्७अफ) अणुवमों का विस्फोट कर रहा है। माषा-विश्लेपण (णपा ५ # 08585) वाले आत्मा' जसे शब्दो को निरेक (206279ह1685) घोपित कर रहे हैं । आत्मा चारों ओर से निष्कासित होरुर कु प्रव्ययवादियों (146०15४5) ओर परामनोविदया (९००४ 59८0०1०४) वालों कौ शरण में अवस्थित है । कुछ आधुनिक विचारक अत्मा या श््रह्म' का नाम सुनते ही उबल पढ़ते हैं । ने कहते हैं“ दुनिया इतना आगे वढ़ गई और हुमलोग वही पुराना ध्ूपद अलापते जा रहे है-्रछ् सत्यं जगन्मिथ्याः | मजो, अब व्रह्म मिथ्या जगत्‌. सत्यम्‌? किए । अयमात्मा त्र्य नही, जयसातमा भ्रमः । हमलोग चलते-फिरते (५०००४१९) मशीन को तरह हैँ । सोचने की करिया भोः पांधिक (2060080) 021) है । इस तरह अत्मा का खातमा हो रहा है । > न २ आज विचार के क्षेत्र में जो क्रान्तिकारी परिवतंन हो रहे हैं, उनसे हम अपृक्त नदीं रह सकते । यदि भारतीय दर्शन की आत्मा को जीवित रहना है; तो हमें आधुनिक चार्वाकों की चुनौतियों को स्वीकार कर, वैज्ञानिक स्तर पर प्रत्युत्तर देना होगा । जीवाणुओं, कोशिकाओं (0615) और' ग्रन्थिस्रावों (लानत ००००९५०१) मादिके द्वारा जो जीवन की व्याख्या वे प्रस्तुत - करते है; उनकी पूर्णल्पेण समीना करनी होगी । विश्लेपण (57519515) का जवाब और गहरे विश्लेपण से देना होगा । भारतीय दशेंन का वैशिष्ट्य है कि वह वत्तेमान जीवन को अतीत और भविप्य के वीच एक कड़ी मानता है । क्लेशों को पुर्वेजन्पार्जित क्मफल मान




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