जैन साहित्य का बृहद इतिहास भाग - 1 | Jain Sahitya Ka Brihad Itihas Bhag - 1
श्रेणी : साहित्य / Literature
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
418
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तुत इतिहास की योजना और मर्यादा :
प्रस्तुत ग्रस्य “जैन साहित्य का ब्रृहद् इतिहास की मर्यादा क्या है, यह स्पष्ट
करना श्रावश्येक है । यह् केवल जैनधर्म या दर्शन से ही संवद्ध साहित्य का
इतिहास नहीं होगा अपितु जैनो द्वारा लिखित समग्र साहित्य का इतिहास होगा ।
साहित्य में यह भेद करना कि यह जैनो का लिखा है श्रीर यह जनेतरों का,
उचित तो नही है किन्तु ऐसा विवश होकर ही करना पड़ा है। भारतीय साहित्य
के इतिहास मे जनो दाय सिते विविध साहित्य की उपेक्षा होती श्राई है । यदि
ऐसा न होता तो यह प्रयत्न जरूरी न होता । उदाहरण के तीर पर संस्कृत
साहित्य के इतिहास मे जब पुराणों पर लिखना हौ या महाकाव्यो पर लिखना
हो तव इतिहासकार प्राय हिन्द पुरागोसे ही सन्तोष करलेते टै श्रौर यही गति
महाकाव्यो की भी है। इस उपेक्षा के कारणों की चर्चा जरूरी नहीं है किन्तु
जिन ग्रन्यो का. विशेष श्रम्यास होता हो उन्हीं पर इतिहासकार के लिए लिखना
प्रासान होता है, यह् एक मुख्य कारण है । (कादंवरी' के पठने-पढ्ानेवाले श्रधिक
है ्रतएव उसकी उयेक्षा इतिहासकार नही कर सकता किन्तु घनपाल की 'तिलक-
मंजरी के विपय में प्राय उपेक्षा ही है क्योकि वह पाव्यग्रस्य नही । किन्तु जिन
विरल व्यक्तियों ने उसे पढा है वे उसके भी गुग जानते है ।
इतिहासकार को तो इतनी फूसंत कहां कि वह एक-एक ग्रन्थ स्वयं पढ़े श्रीर
उसका मूर््याकन करे। होता प्रायः यही है कि जिन ग्रन्यो की चर्चा अधिक हुई हो
उन्ही को इतिहास-ग्रन्थ मेँ स्थान मिलता है, श्रन्य म्रन्थो की प्रायः उपेक्षा होती है ।
'यशस्तिलक' जैसे चंपू की वहुत वर्षों तक उपेक्षा ही रही किन्तु डा० हन्दिकी, ने
जब उसके. विषय मे पूरी पुस्तक लिख डाली तव उस पर विद्रानो का ध्यान गया |
इसी परिस्थिति को देखकर जव इस इतिहास फी योजना वन रही थी तव
डा० ए० एन० उपाध्ये का सुकाव था कि इतिहास के पहले विभिन्न ग्रन्योया
विभिन्न विषयो पर श्रभ्यास, लेख लिखाये जायँ तब इतिहास की सासग्री तैयार
होमो नौर इतिहासकार के लिए इतिहास लिखना आसान होगा । उनका यह
वहुमुस्य सुभाव उचित ही था किन्तु उचित यह समझा गया कि जब तक ऐसे
सेख तयार न हौ जायं तव तक हाय पर हाय धरे बैठे रहना भी उचित
नही है । श्रतएव निश्चय हुभ्रा क्रि मध्यम मागं से जैन साहित्य के इतिहास को
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