विनोबा के विचार | Vinoba Ke Vichar

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Vinoba Ke Vichar  by महादेव देसाई - Mahadev Desai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ विनोबाके विचार 2 कृष्ण-भक्तिका रोग धदुनिया पैदा करें” ब्रह्माजीवी यह इच्छा हुई । इसके अनुसार कारबार शुरू होनेवाला ही था कि कौन जाने कैसे उनके मनमे श्राया कि “श्पने काम में मला-जुरा बतानेवाला पोई रहे तो बडा मजा रहेगा । इसलिए श्रारभमे उन्होने एक तेज तरार टीकं कार गदया । श्रौर उसे यह श्रख्तियार दिया कि श्रागेसे मे जो कु गद्‌ गा उस्तकी जाचका काम तुम्हारे जिम्मे रहा । इतनी तेयारीके बाद ब्रह्माजीने श्रपना कारखाना चालू किया । ब्रह्माजी एक-एक चीज बनाते जति श्रौर टीकाकार उसरी चूक दिराङर श्रपनी उपयोगिता सिद्ध करता जाता । टीकाकारवी जाचके सामने वाई चीज बे ऐव ठहर ही न पाती । “हाथी ऊपर नही देस पाता, ऊट ऊपर दी देखता है । गदह में चपलता नही है, बदर श्प्यत चपल है ।” यो रीकाकारने श्रपनी टीवाके तीर छोड़ने शुरू किये | ब्रह्माजी वी अक्ल गुम हा गई। फ्रि भी उन्होंने एक श्राखिरी काशिश कर दखनेवी ठटानी ओर अपनी सारी वारीगरी सर्च वरके 'मनुष्य' गढा | टीकाकार उसे बारीवीस निरखने लगा । अतमे एक चूव निकल दी राई । “इसवी छातीमे एव सिडवी होनी चाहए थी, जिससे इसके विचार सव सममः पति ।” ब्रह्मजा वारो-- तु रचा यही मेरी एक चूक हुई, अब मै तमे शक्रजी के हवाले करता हू |” यह एक पुरानी कहानी कटी पटी थी। इसके बरिमे शका करनेदी सिप एक ही जगह है| वह यह कि क्हानीके वश्नके श्यनुसार टीकाकार शक्रजीके दवाले हृश्रा नली दीखता । शायद वऋ्याजीको उन पर द्या श्रा गई हो, या शक्‍क्रजीने उनपर श्रपनी शाक्त न श्ाजमाई हा । जो हो, इतना सच है कि श्राज उनकी जाति बहुत फैली हुई पाई जाती है । गुलामी- के जमनिमे वतुष्व बाकी नरह जाने पर वक्तन्यवो मौका मिलता है ॥ कामकी बात खत्म हुई कि बातका ही काम रहता है श्रौर बोलना हीदै




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