व्याख्यान दिवाकर | Vyakhyan Divakar

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Vyakhyan Divakar by कालूराम शास्त्री - Kaluram Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स (= र } = ह “रद्ध वात यह कि निराकार पदार्थं साकार न्ष होत, रेखा कहना बेसमझ लोगों की चात है । 4 ~ तथेव व्योमाभिशरीरवन्तौ 1 \-सचस्वरूपस्य कथं न चिष्णो- 1 देहो मयाच्छरतिसिः प्रदिष्ठः ॥ जीव जो है वड्‌ निसकार है किन्तु निराकार जीच अनेक्त शरीर घारण करके साकार बन जाता है, इसी भकारः निराकार आकारा, ओर चिराकार अग्नि ये दोनों शरीरी घन जति है) इसको; ऐसे, समझिये कि अग्नि सब जगह व्यापक है । संसार [नं कोर सौ:पदार्थ ऐसा नहीं है कि जिसमें अग्नि न हो; रोदेकी कील कर पत्थर पर मार दें, छोहे और पत्थर में व्यापक निरा- 1, कार अग्निं साकार होकर खर में बेठ जाता है। यज्ञ में उत्तरारणि 1 और अधघरारेणि दो उकड़ियोँ का मन्यन होता है । इन दो लक्त- 1 ईले मे व्यापकधनिराकार अग्नि साक्रार बनता है उसी से यज्ञ 1 होता है, दियासलाई की सींक में व्यापक निराकार अग्नि घिख देनें से? साकार बन 'ज्ञाता है । कौन कहता है कि निराकार |; पदों साकार नहीं ह्यो सकता ? ¢ ...“, , -अजन्पा का जन्म । हा. सिसी किसी 'मनष्य-का यह्‌ प्रश्न है कि दद्दर तो अजन्ता विर वह-अचन्मा ईष्वर जन्म कैसे ठे केगा । यदि जन्म चेता # ५ १ 14. ^, कूउअवतारवाद्‌ # [ ३३७ |} (त ~^ ^ 4 अ.




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