प्रवचन सुधा | Pravchan Sudha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
395
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीचन्द सुराना 'सरस' - Shreechand Surana 'Saras'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रवचन-सुधा
गुरोमक्ति गुरौो भक्ति गुरोभक्ति: सदाश्स्तु में ।
चारित्रमेव ससार-वारण मोक्षकारणम् ॥
मेरे हृदय में गुरु के प्रति भक्ति रादा ही बनी रहे, सदा ही बनी रहे ।
वयोफि उनके प्रताप ओर प्रमादे ही भव्यजीवो के हृदय मे चारि का
भाव जागृत होता है । ओर यह् चारिन ही सप्तारका निवारण करनेवाला है
और मोक्ष का कारण है ।
लोग कहते है कि भरिहन्त, सिद्ध वड है, ब्रह्मा, विष्णु ओर महण वड
ह् । परन्तु उनका यह् वडप्पन किसने वताया क्या ? हमने उनको देखा है *
या उनसे बातचीत की है ? उनके गुणों को. किसने बताया 7? अरिहन्त भौर
सिद्ध की पहिचान किसने बतलायी * पच परमेष्ठियो के गुण किसने
बतलाये ? सबका उत्तर यही है कि गुरु के प्रसाद से ही यह सब जानकारी
प्राप्त हुई है । ण्दि गुरु न होते तो ससार मे सर्वेत्न अन्धकार ही हष्टिगोचर
होता । इसलिए सबसे बडा पद गुरु का ही है । इसी कारण से श्री दशवैकालिक
सुर में कहा गया है कि--
जस्सत्िए धम्मपयाई सिक्खे त्स्सतिए वेणइय पउजे ।
सक्कारए तस्सण पचएण काएण वाया मणसावि णिच्च ॥।
अर्थात् जिसके समीप धर्मं के पदो को सीखे उसका सदा विनय
करना चाहिए, उसको पचाग नमस्कार करे ओर मन, वचनं काया से उसका
नित्य सत्कार करे ।
तीर्थकर जैसे महापुरुप भी पूवे भव मे गुरु के प्रसाद से दर्शन-विशुद्धि
आदि बीस वोलो की आराघना करके तीर्थकर नाम गोत्र का वन्ध करते हैं ।
पुन. तीर्थकर बनकर जगत का उद्धार करते हुए मोक्ष को प्राप्त करते है ।
यह सब गुरु भक्ति का प्रसाद है । भाई, गुरु के विना ज्ञान प्राप्त नहीं होता है ।
लोभ छोड़िए
मनुष्य को अपनी उन्नति करने के लिए आवश्यक है कि वह लोभ का
परित्याग करे । धन के लोभ को ही लोभ नही कहते है, अपि तु मान-प्रतिष्ठा
का मोह भी लोभ कहलाता है । परिवार की वृद्धि का लोभ भी लोभ है भर
किसी भी प्रकार की सग्रह-वृत्ति या लालसा को भी लोभ ही कहते है । मनुष्यो
को शरीर का भी लोभ होता है कि यदि हम तपस्या करेगे तो हमारा शरीर
दुबल हो जायगा । भाई लोभ को पाप का बाप कहा जाता है। यह लोभ सर्व
अवगुणो का भडार है । और भी कहा है कि “लोहो सबव्व विणासणो' अर्थात्
लोभ सवं गुणो का विनाशक है। लोभ से, इस परिग्रह के सचय कौ वृत्ति
से मनुष्य क्या क्या अनथं नहीं करत। है । किसी ने ठीक कहा है कि--
User Reviews
No Reviews | Add Yours...