डिंगल मैं वीर रस | Dingal Main Veer Ras

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ 9 माटी माटी बातों का ज्ञान हो जाय। लेकिन जो लागं इस :विषय में अधिक जानकारी प्रास करने के इच्छुक हे! उन्हें चाहिए कि. वेः पृथ्वीराज; दश्वरदास, सूर्यमल श्रादिं डिंगल. के. प्रसिद्ध प्रत्तिद कृंवियों के अंथों का अध्ययन करें । इससे उन्हें डिंगल .साहित्य की गहनता;- उसके सौन्दर्य एवं सजीवता का पता भी लग जायगा और डिंगल व्याकरण विषयक वहत सी नई बातें भी मालूम होंगी । ( १ ) उच्चारण : (श्र ) डिगल मेंशलः का. .उच्वारण कीं 'ल' श्रौर कहीं वैदिक भाषा के 'छ'. की भाँति मूघन्य होता है। श्राजकल बहुत से विद्वानों में कः की दृष्टि से यह ग़लत है । यह “छठ जब किसी. शब्द के बीच में श्राता हे तव उसके स्थान पर लः लिख देने से उसके अथं मे कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता । प्र्‌ व्हुत से ठकारान्त शब्द ऐसे हूं जिनको लकीरान्त कर देने से उनका श्रर्थ बदल जाता है। इस तरह के शब्दों के थोड़े से उदाहरण देखिये । शब्द पर्थ ` शब्द : श्रं साठ पनाला , खाल ` चेमड़ा गाठ गुड़ . शाल वृत्ताकार माटी जाति विशेष माली . धन सम्बन्धी ` काठ मृत्यु - काल कल, दूसरा दिन छुच्ठ वंश कुल - - सव, तमाम ““ ` पक ` . . द्रवाज्ञा. . पोल . „` : अेरःःखोखलापन . गाढ. `... गालीषदुर्वचन . . गालः . : ˆ कपोलः. > : भाक . शिकारक्रीखोज भाल. .. ;. ललाट. `>: चंचठ. . .घोडा . . चंचल चपल. `; ` + ( आ० ) डिगलः की व्ण॑माला मे तालव्य “श' श्रौर-मूंद्न्य “वर नदीं है: । 'प? का प्रयोग. ख” के रूप में होता है । लिखने मे तालेग्यं शः? के स्थानं पर भी दन्त्य शस ही. लिखा जाता है; पर बोलते पंच जहाँ जिस शकार अथवा सकार की श्रावश्यकता होती है, वहाँ वहीं वोला जाता है, जैसे : = देखे अकबर दूर, घेरो दे दुसमण घडा । “` - सागाहर रण सूर, पैर न खिसे प्रतापसी ॥




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