मनुष्य जाति की प्रगति | Manushy Jati Ki Pragati

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Manushy Jati Ki Pragati  by भगवानदास केला - Bhagwandas Kela

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दो दृष्टिकोण धू चलां गया श्र हमेशा के लिए चला गया, ब्रहत से हिन्दग्रोका विचार है किं कालचक्र घृमता रहता है| सतयुग के बाद त्रेता श्और द्वापर नामघाले युगो के बीते पर कलियुग श्रता है । उसके बाद फिर सतयुग श्रा जाताहै) इत तरह सतयुग श्र कलियुग बारी-बारी. से त्राते ह, श्र्थात्‌ पदले उत्यान किर पतन । इसके बाद फिर उन्नति और फिर श्रवनति होती रहेगी । इस मत के अनुसार अब श्रवनति का चक्र चल रहा दै श्र श्रमी कुछ समय तक यही चलता रदेगा | दूसरी विचार-घारी उन लोगों की है, जो भविष्य की श्रोर देखते हैं | ये, विकासवाद को सानते हैं । इनके विचार से प्राचीन काल. में आदमी बिलकुल जड़ली द्ालत में था । उसने धीरे-धीरे उन्नति की। प्रत्येक पीढ़ी के आदमी श्रपने पूवजों सें कुछ-न-कुछ श्रांगे बढ़ते हैं | विकाखवादी. यह ` मानते ह कि श्रादमी दूसरे प्राणियों का विकसित स्वरूप दै । वैक्ञानिकों का मत दै फि पदतले पृथ्वी श्राग कौ तरह गरम थी, वदद घीरे-घीरे ठंडी हुई । तब उसके चारों श्रोर की भाफ को पानी बन गया, उस धानी से समुद्र वना} पानी मं पहले घास की तरह के जीव बने, और, उन जीवों से सछुलियां या. घोंवे श्रांदि । किर इनसे कुवे मेंढक त्रादि बने, जो जल मे भी रह सक्ते ई, श्रौर थल यानी खुश्की पर भी । उ्यो-ज्यों जमीन की दलित बदली; त्यों-त्यों उस प॑र रदनेवाले पशु, पती मी बदलते गये । ये परिवतंन धीरे-धीरे लाखों वषं में हुए हैं। सब से श्राखिरी पशु बन्दर व्र वनमानुस ई, उन्दी बदल कर श्रादमी बना है । आ्रादमी ओर जानवरों में बड़ा फ़रक यह है कि श्रादमी में बुद्धि या तके शक्ति होती है, वह नये-नये श्राविष्कार करता रदता हे । हिन्दुओं के दस अवतारों का क्रम भी विकासवाद से मिलता. हु है | हिन्द शास्त्रों में कहा गया है कि मद्दाप्रलय के वाद साष्टि में केवल जल ही जल रह गया था ] पहला श्रवतार मत्स्यावतार' म्ली के रूप,में हुश्रा, जो जल में रहती है । दूसरा श्रवतार “कुमावतार” कछनें के रूप में हु्रा, जो कि जल में तो रददतां दी है, पर जरूरत होने पर थल्ल




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