युगधर्म के प्रवर्तक राष्ट्रपिता बापू के चरणों में | Yugadhram Ke Pravartak Rashtrapita Bapu Ke Charanon Men
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।
विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन् १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन् १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन् १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अध
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)योजना चाहिए २५
श्रीर् नडाई-कगटेके लिए तार हो ही जाय तो दोच-वचाव करें, उन्हें
लड़ने न दें और भ्रपनें प्राणी की बाजी लगाकर भी सदडाई को
प्रकार देव में ब्रातरिक यानि स्वापित करनें में स्वर्गीय बगेरासकर विद्यार्थी
का बलिदान हमारे लिए सुकर्तिदायक हो सकता है । परतु वह एस झाव-
स्पक बलिदान था । हमें सयोजित, संगठित शोर व्यवह्ित बलिदान रूरना
सलिए एक सेना खड़ी करनी होगी । दूसरा उदाहरण है मूरारजी
देसाई का, जो ग्रानरिफ घानि में सहायक सिद्ध हुआ ।
इस रास्ने से जनता का नतिक स्तर ऊँचा होगा, सत्य श्रौर ध््हिसा में
उनका विघ्वाम दूद होगा श्रौर श्रनतोगत्वा चह लाति की सजबूत बुनियाद
का काम देगा 1 ' जन-जागरण शझौर जन-कल्याण की दिया में भी यह एक
बहुन वड़ा कदम होना । क्या लाति श्र सद्धावना में विस्यास रखने वार
लोग इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार करेगे ?
११९;
(५
योजना चाहिए
युद्ध या घानि यह प्रदन श्रव राज-नेताओ या वुद्रजेनाग्रो कै मी विषाद
था चौद्धिक मथन की समस्या नहीं नह गया हैं। सब मानने लगे हैं दि
धाति सब काल में श्रच्दी है, घौर समाज, घासन तथा संसार को सब सानयों
समस्याएं शानि के द्वारा हल होनी चाहिए, स तर विचार दौएने लगे है
उसमें फठिनाई था फसर यह है दि राटुन्लेला परस्पर घर रहे हैं लि यदि एड
ने साहस फरके कदम ग्रागें बढ़ा दिया तो पही ट्सरा उसे घरमवप से यय
मदे। पसरटर से घरपासन या सेनावल पस गन्म मे हिचग्य ठ । विधे
शक साल से रूसी नेंताय के सभायवो घोए दययपर से सावमस होता हे ये हि
५
सच्ने दिन से घानिचादी ही नहीं, सानिन प्रिय भी हो रो 1 यरे दो दा
ॐ
र
^ छन्ने हानदहीमे प्वाणयिकः वरघ्न फेः परोक्षण को एए्पशोय
समाप्ति फी पोषरा करके इसकी पृष्टि वी है 1:
ए_ ५०२
16
User Reviews
No Reviews | Add Yours...