मैं मेरा मन मेरी शान्ति | Main Mera Man Meri Shanti

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Main Mera Man Meri Shanti by मुनि नथमल - Muni Nathmal

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मुनि नथमल जी का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं जिले के टमकोर ग्राम में 1920 में हुआ उन्होने 1930 में अपनी 10वर्ष की अल्प आयु में उस समय के तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालुराम जी के कर कमलो से जैन भागवत दिक्षा ग्रहण की,उन्होने अणुव्रत,प्रेक्षाध्यान,जिवन विज्ञान आदि विषयों पर साहित्य का सर्जन किया।तेरापंथ घर्म संघ के नवमाचार्य आचार्य तुलसी के अंतरग सहयोगी के रुप में रहे एंव 1995 में उन्होने दशमाचार्य के रुप में सेवाएं दी,वे प्राकृत,संस्कृत आदि भाषाओं के पंडित के रुप में व उच्च कोटी के दार्शनिक के रुप में ख्याति अर्जित की।उनका स्वर्गवास 9 मई 2010 को राजस्थान के सरदारशहर कस्बे में हुआ।

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मैं और मेरा मन १७ स्थित होने पर हो नही डरता किन्तु मानसिक कल्पना से भी ढरता है । वह जीवित है 1 वास्तविक मौत उसकी नही हो रही है, फिर भी वह्‌ काल्पनिक मौत से डरता है और बहुत वार डरता है। मैंने उसे समझाया कि वह ररे नहीं । मौत एक दिन निश्चित है, डरेगा तो भी ओर न डरेगा तो भी । डर के बिना जो मौत आएगी, वहू दु खद नहीं होगी जो डर के साथ आएगी, वह भयकर होगी । इतना समझाने पर भी वह जितना भीरु है, उतना अभय नही है । इस परिस्थिति के सदमभें में में फिर उसी रेखा पर पहुंचता हू कि भय स्वाभाविक है, अभय स्वाभाविक नही है] काल की लम्बी खला मे अनेक तत्त्वविद्‌ हुए हैं । उन्होंने गाया है-- 'काम ' मैं मेरा रूप जानता हृ) तू मकल्पसे उत्पन्न होता है। मैं तेरा संकल्प ही नहीं करूगा, फिर तू मेरे मन की परिधि में कंसे आएगा ?” किन्तु ऐसे गीत गाने वाले भी उससे अनेक वार पराजित हुए हैं । ब्रह्मचय के लिए जिस कठोर सयम की साधना हैं, उसे देख हर कोई इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि अब्रह्मचय स्वाभाविक है; ब्रहाचय स्वाभाविक नहीं है । मैं नही समझ सका--यह क्‍या है और क्यो है कि जिस वस्तु के प्रति सहज माकपण है, उसे हम हेय मान बैठे हैं बौर जिसके प्रति हमारा सहज साकपण नही है उसे उपादेय । आकषण उस वस्तु के रति होता है, जिसकी आवश्यकता हमे अनुभरत होती है । अन्न और जल की मावश्यर्कता प्रत्यक्ष मनुभूत दै! दुनिया के किसी भी अचल मे कोई किसी को यह उपदेश नहीं देता कि तुम अन्न खाओ, जल पीओ, अन्न खाना और जल पीना जरूरी है। यदि तुम ऐसा नहीं करोगे तो तुम्हे पछतावा करना होगा । “मैं सीगधघ खाकर कहता हु कि तुम मनन खाओ, जल पीओ, तुम्हें सुख मिलेगा'--यह कहते मैंने किसी को नहीं सुना । उपदेश की जरूरत क्या है ? भूख लगती है तो वह अपने आप रोटी खाता है । प्यास लगती है तो वह अपने आप पानी पीता है 1 भूख लगने परनखनेसेक्ष्ट होता है मौर खानि से सुख मिलता है 1 हर मादमी चाहता है कि कप्ट न हो, सुख मिलें । इसलिए वह खाता है । खाने के प्रति




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