परिमल | Parimal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७६ परिमल गरसन-मरव-संसार ! उथल पुल कर हदय-- मचा हलचल-- | चल र चल, मेरे पागल वादल ¦ धसता दलदलः हसता दै नद खल्‌ खल्‌ चदताः.कहता कुलु कलकल कलकले । देख देख नाचचा चदय ` वहने को , मदा विकल--वेकलः इस मरोर से- इसी शोर से-- . ` सघन घोर गुरु गहन रोर से सुमे--गगन का दिखा सघन वह छोर ! राग अमर ! झम्वर में भर निज . रोर !




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