हिमालय की छाया | Himalaya Ki Chhaya

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Book Image : हिमालय की छाया  - Himalaya Ki Chhaya

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कुसुम कुमार -Kusum Kumar

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वसंत कानेटकर -Vasant Kanetkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तमिवाला सस्ता होगा जो तुझे इतनी टूर लगता है। यह बात नही पर-- चयो : मैं जौरत जात, चुट, प्रोफेदवर भान्‌ के चर से \ प्रोफदबर तागेवाला चप: भानू को पहचानता है या नहीं ? सिर्फ गर्दन मत हिला । अरे धर चर की विधवा स्वियो को पढाना-लिखाना सिखाया है इन्होंने ताकि वे इज्जत से जी सकं `“ , इसीलिए तो यह आश्रम शुरू किया है भानू ने ! जवान विधवाओं को सभातने के लिए आश्रम गांव से थोडी दूर नहीं चाहिए क्या ? यहू क्या मेरे घर का काम है? फिर? तुझे तो मुझसे दोझा उठाने का भी पैसा नहीं लेना चाहिए था । लिया--वलो ठीक किया । ऊपर से भाड़े की चवननी दी तो-क्यों रे मारुति? मारुति ही है न तु ? (तांगेवाला गददन हिलाता है।) लालगेट के पास जो मस्जिद है वही का तागाहून तेरा? (तंगिदाला खुश होकर हां हां मां जी कहता है) अरे तू तो वादूराव व लड़का लगता है? बुडढा- बुढिया ठीक है ना ? (तांगेवाला : हां हां वेसे ठोक हो हैं पर“) वृदियाको इनं नौरातो मे देवी के दर्शेन कराए कि नही? (तागेवालाःबुद्िया फ(तो नियमहीहै देवौ दन ) वृदिपा से कभी तमि के पैसे मणि तूने ? (तेबाला : “नहीं नहीं बुढ़िया से पसे कैसे ? '“') ती मुझसे मांगता है? तेरे वाप को बताऊंगी । : नहीं मा जी नही, पैसे दे दीजिए, चवन्ती तो चदननी ही सही । भव कँसे ? ले वाव!*** (तांगेवाला चवननी हाथ में लेकर सिर को लगाकर जाने लगता है। तभी'** ) ऐ मारुति इतनी जल्दी जल्दी कहा चला है रे? (तगिवाला घबरा कर पीछे पलटता है तभी'**) अरे घर घर की दिधवाओं को संभालने के लिए इन्होंने यह वनवास मंजूर किया है। तेस भी इम पुण्य के काम भे कुछ ह्य लम उस दानपेटी तप




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