हिमालय की छाया | Himalaya Ki Chhaya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
कुसुम कुमार -Kusum Kumar
No Information available about कुसुम कुमार -Kusum Kumar
वसंत कानेटकर -Vasant Kanetkar
No Information available about वसंत कानेटकर -Vasant Kanetkar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तमिवाला
सस्ता होगा जो तुझे इतनी टूर लगता है।
यह बात नही पर--
चयो : मैं जौरत जात, चुट, प्रोफेदवर भान् के चर से \ प्रोफदबर
तागेवाला
चप:
भानू को पहचानता है या नहीं ? सिर्फ गर्दन मत हिला ।
अरे धर चर की विधवा स्वियो को पढाना-लिखाना
सिखाया है इन्होंने ताकि वे इज्जत से जी सकं `“ , इसीलिए
तो यह आश्रम शुरू किया है भानू ने ! जवान विधवाओं
को सभातने के लिए आश्रम गांव से थोडी दूर नहीं चाहिए
क्या ? यहू क्या मेरे घर का काम है? फिर? तुझे तो
मुझसे दोझा उठाने का भी पैसा नहीं लेना चाहिए था ।
लिया--वलो ठीक किया । ऊपर से भाड़े की चवननी दी
तो-क्यों रे मारुति? मारुति ही है न तु ? (तांगेवाला
गददन हिलाता है।) लालगेट के पास जो मस्जिद है वही का
तागाहून तेरा? (तंगिदाला खुश होकर हां हां मां जी
कहता है) अरे तू तो वादूराव व लड़का लगता है? बुडढा-
बुढिया ठीक है ना ? (तांगेवाला : हां हां वेसे ठोक हो हैं
पर“) वृदियाको इनं नौरातो मे देवी के दर्शेन कराए
कि नही? (तागेवालाःबुद्िया फ(तो नियमहीहै देवौ
दन ) वृदिपा से कभी तमि के पैसे मणि तूने ?
(तेबाला : “नहीं नहीं बुढ़िया से पसे कैसे ? '“') ती
मुझसे मांगता है? तेरे वाप को बताऊंगी ।
: नहीं मा जी नही, पैसे दे दीजिए, चवन्ती तो चदननी ही
सही ।
भव कँसे ? ले वाव!*** (तांगेवाला चवननी हाथ में लेकर
सिर को लगाकर जाने लगता है। तभी'** ) ऐ मारुति
इतनी जल्दी जल्दी कहा चला है रे? (तगिवाला घबरा
कर पीछे पलटता है तभी'**) अरे घर घर की दिधवाओं
को संभालने के लिए इन्होंने यह वनवास मंजूर किया है।
तेस भी इम पुण्य के काम भे कुछ ह्य लम उस दानपेटी
तप
User Reviews
No Reviews | Add Yours...