फैसला | Faisala
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
242
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
कुलदीप नय्यर - Kuldeep Nayyar
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मानस कश्यप -Manas Kashyap
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डिवटेटरद्षिप की झोर [|
दूसरा बेटा सजय भ्रपने मार्तिष्ठै षारखाने मे वा, जो 'जनता' मोटर बनान वे लिए
लगाया गया था । इस सारी गड़बड़ी मं किसी को उसे ख़बर भेजने वा ध्यान ही नहीं
भ्राया था, हालाँविं' धर बुछ दिनो स अपनी माँ को उन कम्युनिस्टो से बचाने मे लिए,
जिनसे उसे सफरत थी, उसने राजनीति मे सक्रिय रूप से हिस्सा लना शुरू कर टिया
था, उसका भाई राजीव राजनीति मे कोई हिस्सा नही लेता था 1
जय संजय प्रपनी विलायती मौटर पर दोपहर के समय घर लौटा तो बाहर
उस एव भीड़ दिषामौ दी । भह समम गया कि क्या हुमा हांगा ग्रौर चह सीधा श्पनी
माँ के पास गया । उसन महा कुछ नहीं पर उसे दखत ही माँ वा चेहरा खिल उठा ।
सजय भ्भी भ्रट्टाईस ही वप का था पर माँ अपने श्रनुमव से जानती थी कि उसकी
सलाह वित्तनी 'तजुर्वेकार लोगा जसी होती थी ।
श्रीमती गाधी न कमरा वद करके श्रपन परिवारवाला वै साथ सलाह
मदविरा किया दि. क्या बरना चाहिए । उनके दोना बंटे, राजीव झौर सजय इसके
खिलाफ थे कि बह ५ छ दिन के लिए भी इस्तीफा दें । सजय न यह वात उ्यादा जोर
देकर वही । उसने उहूँ बही वात वतायी जो वह खुद पहले से जानती थी--विपक्ष के
लोगो से रमादा उ हं खुद श्रपनी पार्टी वे लोगों के ऊँचे होसला स डरना चाहिए ।
इसके वाद वह श्रपने घर की सामान रखन की बाठरी मे चंनी गयी । जब भी
किसी संकट वा सामना होता था वह एसा ही बरती थी । यही उनका शरण स्थल था
जहा उद साचन का समय ब्ौर धवसर मिलता था 1
उाह बहुत सी बाता के बारे मे सोचना था । अगर मैं श्रभी इस्तीफा द दे श्रौर
सुप्रीम काट से बरी' होने के बाद फिर वापस झा जाऊं ता मेरे उन श्रालोचको का गृह
वद हा जायेगा, जा यह भ्रारोप लगात हैं कि मैं हर कीमत पर बृसी सं चिपक्ती रहना
चाहती हूँ । लेक्नि घरगर श काट ने भी इनाहाबाद हाईकाट क॑ फमले का सही
ठहराया तो मुम हमेना के लिण अ्रपनी कुर्सी छाडनी पड़ेगी आर एकं श्रौर कलक ऊपर
से लगा रहेगा ।
उठ भरासा नहीं था कि जो श्रपील बह दायर करेंगी उस पर झ्तालत वा
रवैया वया होगा । श्रबस पत्ले भी जिस सदस्यों का चुनाव हाइवोट से रह हो गया था
या पाबी लगा दी गयी थी, उ हू भी सदन मे बठने नी इजाजत दे दी गयो थी, लेवित
उह बोट न्न बहस मे हिस्सा नेन या भत्ता पान का अधिकार नही होता था । श्गर
अझटालते न कुछ गाते लयाकर फैसला उनके पक्ष म दिया ता ?
उनके सताहकारा ने सबिधान वी 88वीं धारा का झासरा लगा रखा था,
जिसम कहा गया था कि वाट देन का श्रधिकार' न होने पर भी विसी भी मंत्री या
एटार्मी जनरत वा दाना ही सदना सम बोलन श्रौर बहस मे हिस्सा लेन का. श्रधिकार
हमा । स्थगन ग्रादरा किसी भी ढंग का हो पर श्रदालत यह अधिकार किसी भी सबी
से नही छीन सकती थी ।
अगर मै इस्तीफा दे टू तो सारी दुनिया में मेरी वाह वाह होंगी, एक सच्चे
जनवादी वी हैसियत स मेरी साख इतनी वढ जायगी कि अबकी जब चनाव होगा तो
एक बार फिर 1971 की तरह सत्ता मेरे हाथ म भा जायेगी । लेक्नि अगर सुप्रीम कोट
ने सुः प्र छ साल के लिए चुनाव न लड़ने वी पाव ही लगा दी तो *. इनना समय
तो बहुत हाता है--च्तने समय म ता लोग मेरा किया हुआ सारा झ्च्छा वाम च
जायेंगे, प्रौर खुर मेरी पार्टी श्मदरकरं प्रीर उसके बाहर के सत्ताके षन)
1 पूरी कहाना परिशिष्ट 1 मे पच्यि ।
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