समयसार | Samaysaar

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Samaysaar  by श्री कुन्द्कुंदाचार्य - Shri Kundkundachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ हरी लाल षीली नही हलकी भारी नाहि । श्रजर अमर परमातमा रनर पशु के माहि ॥ रोके से रुकती नहीं सब गुण चेतनमा हि। ठोकें से ठुकती नहीं यह गुण चेतन -.थाहि ॥ गज घोड़ा गाड़ी नहीं गाय मेषनहिउँट । चीता रीछ चकोर नहि झातम शिब पद कूट ॥ नहिं यक्तषणी यक्त है व्यैतर भूत पिशाच । जगदूंवा दुर्गा नहीं किन्नर किंकर काच ॥ सूयं चन्द्र॒ नागेन्द्र नहि नहि धरणेन्द्र पुरर । ज्ञान चेतना राम है ऐसे कहत जिनेन्द्र ॥ चेतन वन्त॒ शरीर म रहे सदा श्रमलान। नरख परख निज त्रापको मुक्त महल सो पान ॥ श्रव निज म॑ निज ज्ञानले नियत करो परिणाम | शिव मारग समर करो तव घुघरं सब काम ॥ रागादिवरणा दिसव है पुद्गल कै मेल | वसुगुण तेरी सुरत है केवल भलके खेल ॥ जगी श्रनादि कौलिमा मोह मेल की बेल । भागी मोह की कालिमा निज युए परसो रेल ॥ जय ज्ञान ज्ञाता सवे तीनों भेद मिटाय । किरया कतौकर्मका एक दरब दिखलाय ॥




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