संस्मरण और आत्मकथाएँ | Sansmarad Aur Aatmkathaayen
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about धुनिराम त्रिपाठी -Dhuniram Tripathi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० संस्मरण और आत्मकथाएं
नाले के पानी का हकदार, हमारा तालाब रहता आया था । जब किवाड
खोल दिए जाते, तो झर-झर कल-कल करता हुआ पानी झरने के समान
झरता और नीचे का हिस्सा फेन से भर जाता । मछलियों को उलदी तरफ
तेरने की कसरत दिखाने को सूझती । में दक्षिण के बरामदें की रेलिंग
पकड़कर अवाक् होकर देखा करता । आख़िर उस तालाब का काल भी
आ पहुँचा और उसमें गाड़ियों में भर-भर कर गन्दगी डाली जाने लगी ।
तालाव के पटत ही देहाती हरियाली का छायावाला वह आईना भी मानों
हट मयः । बादामवाला पेड अब भौ खडा ह; लेकिन पर फंलाकर खडे
होने की सुविधा होते भी उस ब्रह्मदंत्य का पता अव नही चलता ।
भीतर और बाहर प्रकाशन बढ़ गया हैं ।
लकी दादौ के जमाने की थी--काफी लम्वी-चौडी, नवाबी कायदे
की । दोनों डण्डें आठ-आठ कहारों के कन्घे की साप के थे । हाथों में
सोने के कगन, कानों में सोने के कुण्डल और बरीर पर लाल रंग की हथकट्टी
मिरजई पहननेवाले वे कहार भी पुरानी धन-दौलत के साथ उसी तरह लोप'
हो गए, जसे इवते हुए सूं कं साथ ही रगीनं बादल । पालकी के ऊपर
रगीन लकी रोके कटाव कटे हुए थे । जिसके कुछ हिस्से घिस-घिसाकर नष्ट
हो गए थे । जहाँ-तहाँ दाग लगे हुए थे और भीतर के गे में से नारियल के
झिरकुट बाहर निकल आए थे । यह मानों इस जमाने का कोई नाम-कहां
असबाब था, जो खजाची-खाने के एक कोने में डाल दिया गया था | मेरी
उम्र इन दिनों सात-आठ साल को होगी । इस संसार के किन्ही जरूरी कामों
में मेरा कोई हाथ नही था और यह् पुरानी पालकी मी सभी जरूरत के कामों
से वरखास्त कर दी गई थी । इसीलिये उसपर मेरे मन का इतना खिचाव
था । वह मानों समुद्र के बीच का एक छोटा-सा टायू थी और में छुट्टी के दिन
का राबिन्सन क्रूसो, जो बन्द दरवाजें में गुमराह होकर चारों ओर की नजर
बचाकर बेठा होता ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...