संस्मरण और आत्मकथाएँ | Sansmaran Aur Aatmakathaen

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Sansmaran Aur Aatmakathaen by धुनिराम त्रिपाठी -Dhuniram Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जिदवकवि रयीन्धनाथं ७ असर कविं रवीन्द्रनाथ ठाकुर के बचपन को आत्मकथा पने जन्म लिया थ। पुराने कलकत्ते मं । शहर भे उन दिनों छकडे छड-छड करते हुए धूल उड़ाते दौड़ा करते भौर रस्सीवाले चानुक वोड़ों की हड़ी निकली पीठ पर' सड़ासड़ पड़ा करतें । न ट्राम थी, न बस और न मोटर- गाडी । उन दिनों कामकाज की एसी दम एला देनेवाली ठेवमटेल महीं धी । इतमीनान से दिन कटा करते थे । बाबू लोग तम्बाकू का कश खींचकर पान चबाले-चबाते आफिस जातें--कोई पालकी में और कोई साझे की गाड़ी में । ओ लोग पैसेवालें थे, उनकी गाड़ियों पर तमगे लगे होते । चमड़े के आधे घूँघटवालें कोचबबस पर कोचबवान बेठा करता, जिसके सिर पर बांकी पगड़ी लहूराती रहती थी । पीछे की ओर दो-दो सईस खड़े रहते, जिनकी कमर में चेंवर झूलते होते । स्त्रियों का बाहर आना-जाना बन्द दरवाजे की पालकी कं दम घुटा देनेवाले अंधेरे में हुआ करता । गाड़ी पर दना शर्म की बत थी । धूप और वर्षा में उनके सिर पर छाता नहीं लग सकता था । किसी के बदन पर शेमीज और पर में जूता दिख गया तो इसे मेमसाहबी फैशन कहा जाता । मतलब यह होता कि इसने लाज-हया घोलकर पी ली है । कोई स्त्री यदि अचानक पर-पुरुष के सामने पड़ जाती, तो उसका घूँघट राटाक-से नाक की फुनगी को पार कर जाता और बह जीभ दांतों तले दब्ाफर झट पीठ फिरा देती । धर में जसे उनका दरवाजा बन्द हुआ करता, वेसे ही बाहर निकलने की पालकी में भी । बड़े आवमियों की यहू-बेधियों की पालकी पर एक मोदा घठटादोप-सा पर्दा पड़ा रहता, जो देखने मे चलते-फिरते कब्रगाह के समान लगता । सध-साथ पीतल की मोपवाली लाठी लिए बरबानजी चला करते । इनका काम था दरवाजे पर बेठकर घर अगोरना, गलमुच्छे सहलाना और रिदतंदारी में स्त्रियों को पहुँ-




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