हिंदी संत काव्य में प्रतीक विधान | Hindi Sant Kavya Main Prateek Vidhan

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Hindi Sant Kavya Main Prateek Vidhan by देवेन्द्र आर्य- Devendra Arya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नावकथन ईश्वरीय विभूति से सम्पञ्च इस प्रकृति के विशाल प्रांगण मे विकीणं दिव्य ज्ञान-मौक्तिक का संचय ही सद्काव्य को सिद्धि है, श्रौर प्रतीक उस सिद्धि की ग्रमिन्यक्ति का प्रबलतम कि बहूना एक मात्र साधन है । ब्रक्षाच्छादित वन प्रान्तके किसी एकान्त क्रोड में ग्रवस्थित रहस्य हृष्टा जिर श्रनन्त, श्रसीम श्रौर विराट चेतन का साक्षात्कार भ्नथवा श्रनुभव करतादै, प्रतीक उस रहस्यमय अ्रव्यक्त रूप को वाणी का मूतिमन्त सौन्दये प्रदान कर उसे जन-जन के लिए मुखरित कर देता है । जीवन ग्रौर साहित्य के, सत्य श्रौर ज्ञान के श्रनेकानिक गतिशील झ्रायामों को मुखरित करता हुमा प्रतीक उसे सुसम्बद्ध रूप में बाँघने का कार्य करता है । “श्रबरन कौं को बरनिये मो पै लख्या न जाई'' (कबीर) की भावना को प्रतीक किस प्रकार मुखरित कर देता हैं, इसका कुछ श्रधिक विस्तृत एवं मौलिक श्रध्ययन प्रस्तुत करना ही मरे इस शोध कार्य की. मूल प्रेरणा है । श्रर्थ-वैविध्य श्रौर परोक्षापरोक्ष भावव्यंजना को यमके, शूपक, उपमा, श्रन्योक्ति श्रादि श्रलंकार भी व्यंजित करते हैँ पर इस दिशामें प्रतीक बहुत श्रागे की मंजिलें तय करता है, इस टष्टिकोण का व्यापक विदलेषण प्रबन्ध में श्रचुस्यूत है । भारतीय साहित्य का, यदि श्रत्युक्ति न हो तो सगवं कहूँगा कि समस्त विदव साहित्य का मूल प्रेरणा स्रोत वह्‌ वैदिक वाडःमय है जिसने बहुमुखी चिन्तनवारा को सतत गतिशीलता प्रदान कीदहै। इस चिरप्रेरणा का ग्रजख स्रोत इतना व्यापक रहा है कि श्रनेकानेक प्रतिकूल परिस्थितियां भी इसके “नामो-निशां' को मिटा तो ते सकीं, वरन्‌ यहाँ की मादी की गन्धमें घुल मिलकर प्रीं की बनकर रह गई । ऐसे विशाल ग्रौर दिव्य वाडमय में प्रतीक दर्शन का. जो भव्य रूप निखरा है उसमें सत्य ग्रौर ज्ञान की चिरस्तन धारा बहुमुखी स्रोतों में प्रवाहित हुई है; श्रावदयकता उस समग्र प्रवाह को ह्वृदयंगम करने की है । प्रस्तुत प्रबन्ध में मैंने कुछ भाव-बिन्दुग्नों को संचित करने का प्रयास मात्र ही किया है । सत्य हृष्टा, तप: पूत महर्षि श्ररविन्द ने वेद-गंगा में श्रापादमस्तक श्रवगाहन कर जिन रहस्यों का उद्घाटन किया है उसने मेरे प्रतीकात्मक विदलेषण को उचित भावभूमि प्रदानकी है । इन्द्र, ब्रह्मा, विष्णुः ठतः वल, पणि तथा एतदूविषयक धारणाभ्रों के प्रतीकात्मक विद्लेषण ने मूर दूर तक प्रभावित किया है, मैं उस दिव्यात्मा का हृदय से कृतज्ञ ह । वेदों के परचात्‌ उपनिषदो, पुराणों तथा रामायणमहाभारत प्रादि कान्य ग्रन्थों म प्रतीको का समुचित निर्वाह श्रौर पट्लवन हृश्राहै। पुराणों में वैदिक कथा सूत्रों का उपदहुंगा हुम्रा है । ब्रह्मा का स्वदुहितु प्रेम, इन्द्र का जारत्व, चन्द्रमा का शुरू पत्नी




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