हिंदी संतकाव्य में प्रतीक विधान | Hindi Santkavya Me Prateek Vidhan

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Hindi Santkavya Me Prateek Vidhan by देवेन्द्र आर्य- Devendra Arya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(श्ध्) सन्त साहित्य में प्रयुक्त प्रतीक (क) मावात्मरु रहस्यपरक प्रतीकू-{१) भात्मा परमात्मा में एकता प्रदशित करने वाले मग्धं भाव के परतीक-- (१) दास्य भावके प्रतीक, (र्‌) सख्य माव के प्रतीक (३) वात्सल्य सएव के प्रतीक, (४) दाम्पत्य माव के प्रतीक-- (क) पूरवानुराग- एक्त श्रान्तरिक विश्वासं (ल) मिलन की उत्सुकता, अ्रारुलता श्रौर विरह माव (ग) मिलन (घ) आध्यात्मिक विवाहोपरान्त श्ानन्दोल्लास्त । (२) दिनचर्या एव जीविका के विविच क्षेवो से गृहीत प्रतीक--जुलाहा, बनजारा, बुम्हार, बाजीगर, बटो, कायस्य, व्यापारी, किसान । (३) मानवेनर प्रकृति से गृहीत प्रेमपरकं प्रतीक-- चातक, चकई-चकवा, सीन, हस, दीपक-पतग । (४) जड प्रकृति से गृहीत प्रतीक । (सं) तात्विक या दार्शनिक प्रतीक --द्रहमा- परमतत्व--(१) ब्रह्म का निर्गुण रूप, (२) मक्ति मार्गीय ढंग पर ब्रह्म का संगुणात्मक रूप--राम, हरि, (३) यौगिक शब्दावली (प्रतीकात्मक् शैली) द्वारा ्रह्य निरूपण शब्द ब्रह्म-प्रोकार शब्द, शून्य (४) माघुयं माव के ब्र्वाची शब्द प्रतीक (५) व्यावसायिक शब्दों के माध्यम से ब्रह्म निरूप 1 जीवात्मा--जीवात्मा भौर परमात्मा का सम्बन्ध, (१) चेतन प्रतीक, {२} मानवेतर चेतन प्रतीक, (३) मानवेतर अचेतन प्रतीक । साया-(है) सानवीय चेतन प्रतीक, (२) मानवेतर चेतन प्रतीक, (३) मानवेतर अचेतन प्रतीक । जगत 1! (ग) साधनात्मक रहस्यपरक 'पारिमा धिक भ्रतोकं (योगिङ प्रतोक) । (१) यम, (र) नियम, (३) प्रान (४) प्राणायाम (५) प्रत्याहार (६) धारणा (७) ध्यान (८) समाधि। योग के प्रकार--मत्रयोग, ज्ञानयोग, हछयोग, राजयोग, सहजयोग 1 (घ) सख्या वाच प्रतीक । (ड) धिपयंय भधान प्रतीके - उलटवां ती 1 उलटवांतियो का वर्गीकरण (१) योगपरक उलटवांसियो में प्रतीक, (२) तात्विक उलटवाँसियों में प्रतीक योजना-{क) मानवीय सम्बन्धों के माव्यम से प्रतीक योजना, (ख) मानवेनर भ्राणियो भ्रौर वस्तुप्रोके माध्यम ते प्रतीक योजना, (३) उललटबासियो में विरोध पलक झल कार प्रधान प्रतीक योजना {४} उलटबासियो ये भ्रद्मुन रस प्रधान प्रतीक योजना, (५) मातेव शरीर तथा सवार स सम्बन्धित प्रतीक, {६) उपदेशपरक भ्रतीक । निष्क्पं ! ~ १६०२८




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